होसबोले हो सकते हैं अगले सरकार्यवाह

नागपुर ॥ एजेंसी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सबसे अहम फोरम प्रतिनिधि सभा की अगले सप्ताह नागपुर में होने वाली बैठक में यूपी प्रमुख एजेंडे पर रहेगा। बैठक में इस पर मंथन होगा कि अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में यूपी में भगवा टोली के प्रदर्शन की 2014 और 2017 की पुनरावृत्ति के कौन-कौन से रास्ते हो सकते हैं। इसमें नए सरकार्यवाह का चुनाव भी होना है। साथ ही अन्य कई पदाधिकारियों की भूमिका और स्थान में भी परिवर्तन का फैसला हो सकता है।
मौजूदा सहसरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले संघ के अगले सरकार्यवाह हो सकते हैं। होली बाद 9, 10 और 11 मार्च को संघ मुख्यालय नागपुर में होने वाली इस बैठक को भगवा टोली की गतिविधियों और फैसलों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। दरअसल, हर तीन वर्ष पर प्रतिनिधि सभा की संगठन मुख्यालय नागपुर में बैठक बुलाकर संघ के कार्यवाह (एक तरह से कार्यकारी प्रमुख) का चुनाव किया जाता है। साथ ही अन्य प्रमुख पदाधिकारियों की नियुक्त होती है। सभी पदाधिकारियों का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है।वर्तमान सरकार्यवाह सुरेश जोशी भैयाजी के तीसरे कार्यकाल का भी तीसरा वर्ष इसी मार्च में पूरा हो रहा है। जोशी काफी पहले से पद मुक्त होने की इच्छा जता चुके हैं। इसलिए माना जा रहा है कि इस बार वे शायद ही एक और कार्यकाल संभालना स्वीकार करें।
होसबोले का पक्ष मजबूत
संघ के सूत्र बताते हैं कि होसबोले के नए सरकार्यवाह होने की संभावना इसलिए भी अधिक है क्योंकि एक तो वे अन्य दावेदारों से अपेक्षाकृत युवा हैं। साथ ही उनके पास संगठनात्मक और धरातल पर काम करने का व्यावहारिक अनुभव दूसरों से अधिक है। मूलरूप से उनका कर्नाटक से होना भी उनके पक्ष में जाता है। केरल की चुनौतियों तथा दक्षिण में विस्तार पर फोकस कर रही भगवा टोली के लिए वे भविष्य की चुनौतियों से पार पाने के लिए सबसे उपयोगी चेहरा हो सकते हैं।एबीवीपी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री रहने के कारण उनका पूरे देश में पहले से ही उस युवा पीढ़ी के साथ संपर्क है जिसे भगवा टोली भविष्य की मजबूती के लिहाज से अपने साथ लामबंद करने के अभियान में जुटी है। मृदुभाषी और नाप तोलकर बोलने का गुण भी उनके पक्ष में है। यहां एक दशक पहले संघ के युवाओं पर फोकस और उन्हें आगे लाने के आह्वान को भी इन समीकरणों के साथ जोड़ लें तो भी होसबोले सबसे आगे दिखते हैं।अतीत बताता है कि केंद्र के सत्ता निर्धारण में यूपी की अहम भूमिका रही है। यूपी जिसके साथ खड़ा हुआ तो उसके लिए केंद्र की सत्ता आसान हो जाती है। लोकसभा के 2014 के चुनाव में प्रदेश से भाजपा गठबंधन को मिली 73 सीटें भाजपा को भारी बहुमत दिलाने में अहम रहीं। यही नहीं, खुद पीएम का प्रदेश से लोकसभा सदस्य होना, उनके बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह, संघ के सहसरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल और भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री संगठन रामलाल का यूपी से रिश्ता तथा लोकसभा की सबसे ज्यादा 80 सीटें होना भी प्रदेश को विशिष्ट बनाता है। संघ किसी भी स्थिति में नहीं चाहेगा कि यूपी जैसे बड़े राज्य में उसके पक्ष में बने माहौल में कहीं से भी गिरावट आए।
यह भी है वजह
एक बात और ध्यान में रखने वाली है कि 2025 में संघ सौ वर्ष पूरे करेगा। शताब्दी वर्ष होने से संघ के लिए आने वाले छह वर्ष काफी महत्वपूर्ण है। संघ ने तब तक देश के प्रत्येक बस्ती तक संघ की शाखा पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है। जाहिर है कि संघ के लिए इस एजेंडे को पूरा करने के लिए भी केंद्र में भाजपा की सरकार रहना जरूरी है।लोकसभा के अगले वर्ष के चुनाव मे भाजपा फिर सत्ता में लौट आई तो वह 2024 तक रहेगी। जाहिर है कि इससे संघ का काम काफी आसान हो जाएगा। पर इसमें यूपी का प्रभावी प्रदर्शन और मजबूती प्रमुख शर्त है। इस नाते भी बैठक में यूपी प्रमुख एजेंडे में रहेगा।


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