मध्यप्रदेश के बेपरवाह अफसर, सरकार को लगी जनता के 10 करोड़ की चपत

सनव्वर शफी ॥ भोपाल
मध्य प्रदेश में परिवहन विभाग के अफसरों की बेफ्रिकी का खामियाजा आम जनता के साथ-साथ सरकार को भी भुगतना पड़ रहा है। अफसरों की लापरवाही की वजह से जहां जनता को करीब 10 करोड़ रु. का नुकसान उठाना पड़ा है, वहीं सरकार को भी करोड़ों रु. की चपत लग चुकी है। इसके बाद भी सरकार इन लापरवाह अफसरों पर शिकंजा नहीं कस पा रही है। इन अफसरों की लापरवाही का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगाने वाली लिंक उत्सव कंपनी को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मुंह की खानी पड़ी थी, फिर भी वह आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल में केस जीत गई और यहां से भ्रष्टाचार के आरोप व गड़बडिय़ों की शिकायत के बाद तत्कालीन परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह के आदेश पर निरस्त किया गया ठेका फिर से बहाल करवा लाई है, जबकि कंपनी फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक गई, लेकिन राहत नहीं मिली। इतना नहीं, अफसरों की बेफ्रिकी की वजह से कंपनी के हौंसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि वह अब काम भी अपनी शर्तों पर ही करना चाहती है और रेट में भी बढ़ोतरी चाहती है। इस स्थिति में फंसे परिवहन विभाग के अफसरों ने अपने आपको बचाने के लिए (शेष पेज 5 पर)
मध्यप्रदेश के बेपरवाह अफसर…
जनहित का हवाला देते हुए महाधिवक्ता कार्यालय, जबलपुर से विधिक राय मांगी है। इस पर महाधिवक्ता ने भी ठेके को पुनर्जीवित करने की सलाह दी। इसके बाद अफसरों ने शासन को प्रस्ताव बनाकर भेज दिया है। इस प्रस्ताव पर शासन की मुहर लगने के बाद कंपनी दोबारा काम करना शुरू करेगी। यह अनुबंध साल 2012 में साल 2027 तक के लिए किया गया था, जिसे बहाल कर दिया गया है।

दबाकर रखे रहे मामला, ताकि अपील का निकाला जा सके समय
वहीं परिवहन विभाग के रिटायर्ड अफसरों का कहना है कि इस मामले में कंपनी और अफसरों की साठ-गांठ से इनकार नहीं किया जा सकता है। जब आपके पक्ष में फैसला नहीं आया तो आपके पास अपील करने का मौका होता है, लेकिन इस मामले में विभाग ने कोई अपील नहीं की है और अपने पास दबा कर रखे रहे, ताकि अपील करने का समय निकाला जा सके और कंपनी को लाभ पहुंचाया जा सके। उनका कहना है कि ऐसे अफसरों पर सरकार को सख्त रवैया अपनाते हुए इन अफसरों की सैलरी से राशि की कटौती करनी चाहिए।

अपील करते है तो मिलेगी हार और समस्या बनी रहेगी जस की तस
इधर, परिवहन अधिकारियों का कहना है कि अधिनियमों के तहत फैसले की विरुद्ध अपील तो की जा सकती है, लेकिन यह अपील प्रक्रिया में गलती होने की स्थिति में की जा सकती है, यदि अपील की भी जाती है तो हम हार जाएंगे और फिर हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ेगा और निरंतर यही प्रक्रिया चलती रहेगी। उनका कहना है कि केस छह साल से चल रहा है और प्रक्रिया में गलती की संभावना ही नहीं हैं, क्योंकि इस मामले की सुनवाई वरिष्ठ रिटायर्ड जजों द्वारा की गई है।

हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट: प्रदेश में कब-क्या हुआ
22 फरवरी 2012: प्रदेश में जिला परिवहन कार्यालयों मेंं वाहनों में हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगनी शुरू हुईं।
19 जून 2014: कंपनी का ठेका निरस्त हुआ। इसके बाद कंपनी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कंपनी को स्टे मिल गया और काम दोबारा शुरू हुआ।
18 अक्टूबर 2014: कंपनी का ठेका फिर से निरस्त किया गया और काम रूक गया।

  • इसी बीच विभाग ने 10 कंपनियों को ट्रांजेक्शन एडवाइजर के रूप में नियुक्त करने के लिए आमंत्रित किया पर किसी कंपनी ने अब तक रुचि नहीं दिखाई है।
  • कंपनी ने दोबारा हाईकोर्ट की शरण ली, हार मिली। फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी कंपनी को एक और मौका दिए जाने से इंकार कर दिया।
  • सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए आर्बिट्रल को केस भेज दिया और यहां से कंपनी को राहत मिली और विभाग को ठेका पुनर्जीवित करने के आदेश दिए।
  • 1 अप्रैल 2019 से हाई सिक्योरिटी नंबर को अनिवार्य कर दिया गया। इसके बाद विभाग ने भी नए वाहनों पर हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगाने का जिम्मा निर्माता कंपनी को दिया है।
  • अक्टूबर 2014 से अप्रैल 2019 के बीच प्रदेश में सभी तरह के करीब 50 लाख वाहन नए खरीदे गए हैं। इन वाहनों पर हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट नहीं है। बाजार से प्लेट खरीदकर नंबर लिखवाये हैं।
  • आर्बिट्रल में साबित नहीं कर पाए गड़बडिय़ां
    परिवहन विभाग जनवरी 2012 में लिंक उत्सव कंपनी से हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगाने का अनुबंध किया था। इस कंपनी ने हर जिले में प्लेट लगाने का काम शुरू कर दिया, उसके बाद कंपनी शिकायतें आने लगीं। प्लेटों की गुणवत्ता ठीक नहीं थी। साथ ही 19 लाख वाहनों का पैसा दिया गया था, लेकिन 9 लाख वाहनों पर प्लेट लगाई। शर्तों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए अक्टूबर 2014 में कंपनी का ठेका निरस्त कर दिया गया, वहीं आर्बिट्रल में सुनवाई के दौराना दोनों पक्षों को पूरा मौका दिया गया, लेकिन अफसरों द्वारा आर्बिट्रल में साबित नहीं कर पाया कि 19 लाख वाहनों का पैसा लिया और उनकी नंबर प्लेट नहीं लगाई। इस आधार पर आर्बिट्रल ने लिंक उत्सव के पक्ष में फैसला दिया।

इस तरह समझें

  • अक्टूबर 14 में लिंक उत्सव कंपनी का ठेका निरस्त कर कंपनी की सिक्यूरिटी मनी के 3 करोड़ रु. जब्त कर ली गई थी। अब इस राशि को विभाग को रिलीज करना होगा।
  • कोर्ट केस में कंपनी के 2 करोड़ 68 लाख रु. खर्च हुए हैं, जो शासन को लौटाना होंगे।
  • कंपनी ने वाहनों पर नंबर प्लेट लगाने के 10 करोड़ रु. ले लिए, लेकिन वाहनों मेें नंबर प्लेट नहीं लगाई है। विभाग यह पैसा नहीं मांगेगा।


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