Shivshakti Sunrise: ‘शिवशक्ति’ पर सुबह से बड़ी उम्मीद, क्या दोबारा काम करना शुरू करेंगे विक्रम -प्रज्ञान

shivshakti point sunrise: हर किसी को बेसब्री से इंतजार है कि क्या एक बार विक्रम लैंडर(vikram lander) और प्रज्ञान रोवर(pragyan rover) काम करना शुरू कर देंगे. दरअसल चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सुबह होने वाली है. इसका मतलब यह है कि विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को सूरज की गर्मी से ऊर्जा मिलने लगेगी. इसरो का कहना है कि अगर पर्याप्त मात्रा में सूरज की रोशनी दोनों के सोलर पैनल पर पड़ेगा तो वे जाग जाएंगे और ऐसा होने पर वो काम करना शुरू करेंगे. विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर के रिसीवर ऑन मोड में है हालांकि दूसरे उपकरण बंद रखे गए हैं. 22 सितंबर को विक्रम से संपर्क साधने की कोशिश होगी क्योंकि तब तक सोलर पैनल चार्ज हो जाएंगे. चांद के दक्षिणी ध्रुव पर रोशनी अब अगले 14 से 15 दिन तक रहने वाली है.

4 सितंबर से स्लीपिंग मोड में विक्रम लैंडर

विक्रम लैंडर को 4 सितंबर को स्लीपिंग मोड में यानी सुलाया गया था. उसके पेलोड्स बंद किए गए थे. हालांकि रिसीवर को ऑन रखा गया था. खास बात यह है स्लीपिंग मोड में जाने से पहले विक्रम लैंडर अपनी जगह (shivshakti point) से उछला और जिस जगह पर उतरा था वहां से करीब 40 मीटर दूर लैंड किया गया. इस सफल लैंडिंग से आगे के रास्ते भी खुले मसलन यदि किसी मिशन को चांद की सतह पर उतारा जाता है तो उसकी वापसी भी हो सकती है.चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास स्पेसक्राफ्ट को उतराने वाला भारत पहला देश है..इस मिशन का पहला उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र का पता लगाना है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसमें पर्याप्त मात्रा में जमा हुआ पानी मौजूद है.स्लीप मोड में जाने से पहले विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने चांद की सतह और मिट्टी पर अलग-अलग प्रयोग किए और कई रहस्यों को बेपर्दा किया.

सूर्योदय का होना इस वजह से जरूरी

चंद्रयान 3 मिशन के लिए सूर्योदय एक महत्वपूर्ण क्षण है क्योंकि यह लैंडर और रोवर को कार्य करने के लिए आवश्यक गर्मी प्रदान करेगा. इसरो ने कहा है कि वे 22 सितंबर को संचार प्रयास शुरू करने से पहले तापमान के एक निश्चित स्तर से ऊपर बढ़ने का इंतजार करेंगे।14 जुलाई, 2023 को लॉन्च किया गया चंद्रयान-3 मिशन पहले ही महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कर चुका है. इसने भारत को चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरने वाला चौथा देश और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास ऐसा करने वाला पहला देश बना दिया. मिशन का प्राथमिक उद्देश्य इस वैज्ञानिक रूप से पेचीदा क्षेत्र का पता लगाना है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसमें पर्याप्त मात्रा में जमा हुआ पानी मौजूद है.


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