मप्र सरकार को नहीं मिलेगी डोंगरीताल कोयला खदान

प्रशासनिक संवाददाता ॥ भोपाल
चुनावी साल में मोदी सरकार ने मप्र की शिवराज सिंह चौहान सरकार को एक ओर झटका दिया है। कोल ब्लाक आवंटन पर लंबे समय से लगी रोक के बीच मप्र सरकार ने सिंगरौली जिले में डोंगरीताल की दो नंबर की खदान को प्राप्त करने की कोशिशें शुरू कीं थीं लेकिन दो दिन पहले केन्द्र सरकार बड़ी कोयला खदान की सार्वजनिक नीलामी करने का फैसला ले लिया है। केन्द्र के इस फैसले न केवल मप्र की कोशिशों को झटका लगा है बल्कि उसकी पूरी प्लानिंग चौपट हो गईहै।
सूत्रों के अनुसार केन्द्रीय कोयला मंत्रालय दो दिन कोयला सेक्टर को कमर्शियल माईनिंग के लिए खोलने का फैसला लिया है। पहले चरण में देश की 12 प्रमुख कोयला खदानों की नीलामी का फैसला लिया गया है। इन 12 खदानों में मप्र के सिंगरौली स्थित डोंगरीताल की दूसरे नंबर की कोयला खदान भी शामिल है। कोयला मंत्रालय मार्च के अंतिम सप्ताह में खदानों की नीलामी प्रक्रिया प्रारंभ करेगा। बताया जा रहा हैकि इन महत्वपूर्णकोयला खदानों को अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों को देने की कोशिश में है ताकि इनकी अधिकतम वेल्यू प्राप्त हो सके। रियो टिंटो और बीएसपी बिलिटन जैसी कंपनियों के इस नीलामी में हिस्से लेने की उम्मीद है।
दो साल पहले बनी थी कमेटी
मप्र सरकार ने ने डोंगरीताल-दो कोल खदान के आवंटन के लिये आवेदन लगाये जाने के संबंध में अनुशंसा करने के लिए जनवरी 2017 में अंतर्विभागीय समिति बनाई थी। अपर मुख्य सचिव ऊर्जा की अध्यक्षता में गठित समिति में वित्त विभाग और वाणिज्य, उद्योग एवं रोजगार विभाग के सचिव सदस्य थे। सचिव खनिज साधन सदस्य सचिव थे। यह समिति लघु उद्योग निगम के साथ राज्य खनिज निगम द्वारा संयुक्त उपक्रम गठित कर कोयला ब्लॉक डोंगरीताल-दो के आवंटन के लिये भारत सरकार से अनुरोध करने पर विचार करने के लिए बनाई गई थी। समिति ने कोयला ब्लॉक डोंगरीताल-2 के आवंटन के लिये आवेदन लगाये जाने के संबंध में इसके तकनीकी, वित्तीय एवं वाणिज्यिक पहलुओं पर विचार किया और और इसके बाद एक रिपोर्ट भी सरकार को सौंपी थी। केन्द्र सरकार के फैसले के बाद मप्र सरकार की दो सालों की कवायद पर पानी फिर गया है।
न प्लांट लगा, न बिजली बनी
वर्ष 2008 में मध्य प्रदेश खनिज निगम ने सिंगरौली में 6 6 0 मेगावाट की थर्मल पावर प्लांट लगाने की योजना बनाईथी, ताकि डोंगरी ताल-2 ब्लाक के कोयले का उपयोग किया जा सके। उसने इसके लिए जय प्रकाश एसोसिएट्स के साथ समझौता प्रपत्र पर हस्ताक्षर किया था। कोयला परियोजना और इससे बिजली उत्पादन के लिए करीब 6 सालों का समय रखा गया था लेकिन सरकार की यह योजना भी फेल हो गई।


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