सूली पर चढऩे के बाद भी जिंदा थे ईसा मसीह

माना जाता है कि जिस समय ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था उस समय वह मरे नहीं जिंदा थे। क्योंकि सूली पर चढ़ाए जाने के कुछ दिन बाद ईसा मसीह को अपनी कब्र के पास बैठा देखा गया था। जिस दौरान उन्हें देखा गया उसके बाद वह एक तेज रोशनी में बदल गए थे। कहा जाता है कि ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाए जाने के बाद लोग बहुत दुखी थे। लेकिन अगले ही रविवार को मैरी मैग्डेलन नाम की एक महिला ने उन्हें अपनी ही कब्र के पास जीवित अवस्था में देखा था। लोगों ने ये कहना शुरू कर दिया था वो परमात्मा का स्वरूप हैं उन्हें कौन मार सकता है, यीशु वापस आ गए हैं। इस दिन को ईसाईयों में ईस्टर के तौर पर मनाया जाता है। हरमैन फुल्डा की लिखी किताब (दास क्रूज अंड दू क्रूयिजियूंग (क्रूस और क्रूस पर चढ़ाना), 1878, पेज 109) के अनुसार किसी भी व्यक्ति को सरेआम मौत की सजा देने के लिए जो जगहें चुनी गई थीं, उनमें से कुछ जगहों पर पेड़ नहीं थे। जहां लोगों को सूली पर चढ़ाया जाए। इसलिए उस दौरान लकड़ी का एक सीधा खंभा जमीन में गाड दिया जाता था। इस पर दोषी को लटकाकर उसके दोनों हाथों को ऊपर बांधकर उनमें बेरहमी के साथ कील ठोंक दी जाती थी। इतना ही नहीं कुछ मुजरिमों के तो पैरों को भी बांधकर कील ठोंक दी जाती थी। इसी जगह ईसा मसीह को भी क्रूर लोगों ने सूली पर चढ़ा दिया था।


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