आज से बदल गए शेयर बाजार में ट्रेडिंग के नियम, देखिए आप पर क्या पड़ेगा असर

नई दिल्ली: शेयर बाजार में मार्जिन का नया सिस्टम और मार्जिन प्लेज और रीप्लेज की व्यवस्था आज से लागू हो गई है. ब्रोकर्स की मांग थी कि सिस्टम को एक महीने तक के लिए और टाल दिया जाए, क्योंकि तकनीकी तौर पर दिक्कतें आ रही हैं. इसी मामले पर सेबी ने कल सभी पक्षों के साथ बैठक की थी. इसके बाद ये फैसला लिया गया कि अब इसे 1 सितंबर से ही लागू कर दिया जाए. इस खबर का शेयर बाजार में ट्रेडिंग करने वालों, और ब्रोकर्स पर किस तरह से असर पड़ेगा. इसी को समझते हैं

आज से लागू हुआ नया मार्जिन सिस्टम
1.
 कैश सेगमेंट में भी शेयर खरीद-बिक्री पर अपफ्रंट मार्जिन देना होगा. क्लाइंट से मार्जिन नहीं लेने पर ब्रोकर्स पर पेनाल्टी लगेगी. अगर मार्जिन में 1 लाख रुपए से कम की कमी रहती है तो 0.5% पेनाल्टी लगेगी. 1 लाख रुपये से ज्यादा के शॉर्टफॉल पर 1% पेनल्टी लगेगी. अगर लगातार तीन दिन तक मार्जिन शॉर्टफॉल रहता है या महीने में पांच दिन शॉर्टफॉल रहता है तो पेनल्टी 5% हो जाएगी.
2. मार्जिन प्लेज/री-प्लेज का सिस्टम भी आज से लागू हो गया है. अब क्लाइंट के डीमैट ट्रेडिंग अकाउंट में रहते हुए शेयर गिरवी होंगे, डिपॉजिटरी के सिस्टम से इलेक्ट्रॉनिक तरीके से ये शेयर गिरवी रखे जाएंगे. क्लाइंट को ट्रेडिंग मेंबर के पास शेयर को गिरवी रखना होगाा, इसके बाद शेयर ट्रेडिंग मेंबर से क्लीयरिंग मेंबर के पास गिरवी होगा, क्लीयरिंग मेंबर फिर क्लीयरिंग कॉर्प के पास शेयर को गिरवी रखेगा.

प्लेज/रीप्लेज नियम पर ब्रोकर्स तैयार नहीं 
कल सेबी के साथ बैठक में ब्रोकर्स ने अपनी परेशानियां बताईं, ब्रोकर्स ने कहा कि तकनीकी तौर पर सिस्टम अभी तैयार नहीं हैं, डिपॉजिटरीज़ की ओर से अभी दिक्कतें हैं. यूनिक क्लाइंट कोड की मैचिंग में भी परेशानी आ रही है. हालांकि डिपॉजिटरीज़ ने कहा है कि उनका सिस्टम तैयार है.

सेबी ने नए मार्जिन सिस्टम के पीछे मंशा ये है कि ब्रोकर ज़रूरत से ज्यादा जोखिम अपने सिर पर न लें. क्लाइंट का रिस्क खुद पर लेने से ब्रोकर्स फंस सकते हैं. बीते कई सालों में दर्जनों शेयर ब्रोकर्स की दुकानें बंद हुईं हैं.

डेरिवेटिव में मार्जिन ट्रेडिंग  
कैश के बाद डेरिवेटिव सेगमेंट में मार्जिन ट्रेडिंग के नए नियम 1 दिसंबर से लागू होंगे. आपको बता दें कि डेरिवेटिव में सौदे काफी बड़े होते हैं, इसलिए इसमें रिस्क भी बहुत होता है. इसको एक उदाहरण के तौर पर समझते हैं, निफ्टी फ्यूचर्स में एक लॉट खरीदने या बेचने के लिए आपके ट्रेडिंग अकाउंट में 1.5 लाख रुपये होने चाहिए. इसके एक्सचेंज मैनडेटेड मार्जिन कहते हैं, जिसे पोजीशन बनाने के लिए जरूरी होता है.

अब मान लीजिए कि आपके खाते में सिर्फ 50 हजार रुपये ही हैं, यानि पोजीशन बनाने के लिए 1 लाख रुपये की कमी है. कायदे से तो आप कोई भी खरीद-बिक्री नहीं कर सकते. लेकिन ऐसा नहीं होता. आपको ब्रोकर आपकी इस एक लाख की कमी को पूरा करता है जिसे shortfall कहते हैं. लेकिन शर्त ये होती है कि ट्रेडिंग खत्म होते ही आप अपनी पोजीशन भी खत्म कर देंगे. आपको जो भी मुनाफा या घाटा होगा ब्रोकर आपके खाते में डाल देगा.


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