PM Modi करेंगे चौरी-चौरा शताब्दी महोत्सव की शुरुआत, जानें क्या है 99 साल पुराना इतिहास

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) आज (गुरुवार) चौरी-चौरा शताब्दी महोत्सव (Chauri Chaura Centenary Celebrations) का वर्चुअल उद्घाटन करेंगे. इसके साथ ही वह डाक टिकट भी जारी करेंगे. कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) शामिल होंगे, जबकि राज्यपाल आनंदी बेन पटेल वर्चुअल जुड़ेंगी.

कई कार्यक्रमों का होगा आयोजन
चौरी-चौरा घटना की शताब्दी (Chauri Chaura Centenary) के अवसर पर गुरुवार (4 फरवरी) से गोरखपुर समेत प्रदेश के सभी जिलों में अलग-अलग कार्यक्रम होंगे, जो पूरे साल चलेगा. चौरी-चौरा शहीदों के सम्मान में यह अब तक का सबसे बड़ा कार्यक्रम होगा. इस दौरान शहीदों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिजनों को सम्मानित भी किया जाएगा.

क्या है चौरी-चौरी का 99 साल पुराना इतिहास

चौरी-चौरा का इतिहास 99 साल पुराना है. 4 फरवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा में कुछ सत्याग्रही आंदोलन कर रहे थे, इस दौरान अंग्रेज सिपाही ने एक आंदोलनकारी की गांधी टोपी को पांवों तले रौंद दिया था. इसके बाद सत्याग्रही आक्रोशित हो गए और पुलिसवालों को दौड़ा दिया. पुलिसवाले भागकर थाने में छिप गए, लेकिन सत्याग्रहियों ने थाने को घेर लिया. पुलिस ने बचाव में फायरिंग शुरू कर दी, जिसमें 3 सत्याग्रही मौके पर शहीद हो गए और 50 से ज्यादा घायल गए. गुस्साए क्रांतिकारियों ने पुलिस चौकी में आग लगा दी, जिसमें थानेदार समेत 23 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई.

अंग्रेज सरकार ने 114 को सुनाई मौत की सजा

इस घटना के बाद गुस्साई अंग्रेजी सरकार ने इलाके के लोगों पर कहर ढाना शुरू किया. इस मामले में गोरखपुर कोर्ट में मुकदमा दर्ज हुआ. जांच के बाद 4 फरवरी 1923 को अंग्रेजी सरकार ने 114 क्रांतिकारियों को मौत और दर्जनों लोगों को काले पानी की सजा सुनाई. इसके बाद पूर्वांचल के गांधी कहे जाने वाले संत बाबा राघव दास ने 11 फरवरी 1923 को इस फैसले के विरोध में चौरीचौरा में सभा की और मदन मोहन मालवीय से कोर्ट में में क्रांतिकारियों का पक्ष रखने की अपील की.

अंग्रेजों ने 19 लोगों को दी फांसी की सजा
बाबा राघव दास की अपील पर मदन मोहन मालवीय (Madan Mohan Malviya) ने कोर्ट में क्रांतिकारियों का पक्ष रखा और 114 लोगों में से 95 लोगों की मौत की सजा माफ कराई, लेकिन 19 क्रांतिकारियों की फांसी की सजा बरकरार रही. इसके बाद इन क्रांतिकारियों ने दया याचिका दायर की, लेकिन 1 जुलाई 1923 को उनकी याचिका अस्वीकार हो गई. इसके बाद 2 जुलाई 1923 को घटना के आरोप में देश की अलग-अलग जेलों में बंद 19 क्रांतिकारियों को फांसी दी गई.

इन 19 क्रांतिकारियों को दी गई थी फांसी
चौरी-चौरा कांड में दोषी मानते हुए अब्दुल्ला, भगवान, विक्रम, दुदही, काली चरण, लाल मोहम्मद, लौटी, मादेव, मेघू अली, नजर अली, रघुवीर, रामलगन, रामरूप, रूदाली, सहदेव, संपत पुत्र मोहन, संपत, श्याम सुंदर और सीताराम को फांसी दी गई थी.


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