मध्यप्रदेश में आला अधिकारियों के संरक्षण में शिक्षा माफिया!

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी सरकार नहीं ले सकी प्राइवेट स्कूलों से फीस का हिसाब

उमा प्रजापति ॥ भोपाल
प्राइवेट स्कूलों की आड़ में मध्यप्रदेश में शिक्षा माफिया दिन दोगुनी-रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं। गरीब अभिभावक की जेब पर डाका डालने वाले शिक्षा माफिया को मध्यप्रदेश सरकार में पदस्थ शिक्षा अधिकारी लगातार संरक्षण दे रहे हैं। यह आरोप मध्यप्रदेश पालक संघ लगातार लगाता रहा है और सरकार को जगाने की कोशिश करता रहा है, लेकिन जब यहां सुनवाई नहीं हुई तो सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश के छात्र-छात्राओं के हित में फैसला सुनाते हुए प्रदेश सरकार को आदेश दिया था कि वह सभी प्राइवेट स्कूलों का लेखा-जोखा मंगाए और जो प्राइवेट स्कूल मनमानी फीस वसूल रहे हैं उस पर सख्त कार्रवाई की जाए, लेकिन आज दिनांक तक न तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अमल हुआ है और न ही किसी बड़े शिक्षा संस्थान पर कार्रवाई की गई। स्कूलों द्वारा जानकारी नहीं भेजने पर लोक शिक्षण आयुक्त ने सभी संभागीय संयुक्त संचालकों को चिट्ठी लिखी है और उसमें स्पष्ट लिखा है कि यह अत्यंत खेद जनक है। इससे स्पष्ट है कि आपकी ओर से माननीय उच्चन्यायालय द्वारा दिए गए आदेश के पालन में रुची नहीं ली जा रही है।

17,126 स्कूलों ने ही पोर्टल पर अपलोड किया डेटा
फीस के मामले में निजी स्कूल सरकार पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। स्थिति यह है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी प्रदेश के 40 फीसदी स्कूलों ने ही फीस का लेखा-जोखा शिक्षा विभाग को दिया है। 60 प्रतिशत स्कूल अब भी ऐसे हैं, जिन्होंने फीस की जानकारी विभाग को नहीं दी है। इसमें भोपाल के 844 एवं इंदौर जिले के 1 हजार 823 स्कूल शामिल हैं। लोक शिक्षण संचालनालय (डीपीआई) ने संयुक्त संचालक एवं जिला शिक्षा अधिकारियों को इन स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश जारी किए हैं। मजे की बात तो यह है कि पालक संघ मध्य प्रदेश द्वारा ही स्कूलों द्वारा ली जा रही मनमानी फीस को लेकर याचिका दायर की गई थी, जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने 27 अगस्त को फाइनल आदेश जारी कर सरकार को भेजे थे। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए सभी निजी स्कूलों को 3 सितंबर तक फीस का हिसाब देने के लिए कहा था। कोरोना काल में स्कूल संचालकों ने पहली से 12वीं तक के छात्रों से किस मद में कितनी फीस ली, उन्हें यह सब बताना था। लेकिन स्थिति यह है कि सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार प्रदेश के कुल 37 हजार 71 प्राइवेट स्कूल हैं। डीपीआई ने इन स्कूलों को सुप्रीम कोर्ट को गाइडलाइन के मुताबिक फीस का डेटा ऑनलाइन करने के आदेश जारी किए थे। आदेश जारी होने के बाद प्रदेश के मात्र 17 हजार 126 स्कूलों ने ही फीस का डेटा एजुकेशन पोर्टल पर अपलोड किया है, शेष 19 हजार 945 स्कूलों ने अब भी फीस की जानकारी शिक्षा विभाग को नहीं दी है। लोक शिक्षण संचालनालय के आयुक्त अभय वर्मा ने सभी संयुक्त संचालक एवं जिला शिक्षा अधिकारियों को फीस की जानकारी न देने वाले स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश जारी किए हैं।

आज तक सरकार ने किसी भी बड़े स्कूलों के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं की है और स्कूल सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी मनमानी पर उतारू हैं।
कमल विश्वकर्मा
अध्यक्ष, पालक महासंघ, मध्य प्रदेश्

मनमानी पर नहीं लग सका अंकुश
मध्य प्रदेश के सभी स्कूलों को भी 3 सितंबर तक हिसाब सबमिट करना था। अभिभावकों को उम्मीद थी कि इस आदेश के बाद अब प्राइवेट स्कूल संचालक ट्यूशन फीस के नाम पर मनमानी नहीं कर सकेंगे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी मध्य प्रदेश में निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश नहीं लग सका है।
यह जानकारी करना थी अपलोड
सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार स्कूल संचालकों को बताना था कि पहली से 12वीं कक्षा तक के छात्रों से वे किस मद में कितनी फीस ले रहे हैं। माना जा रहा था कि कोरोना काल के दौरान खेलकूद, वार्षिक कार्यक्रम, लाइब्रेरी और सांस्कृतिक एक्टिविटी सहित अन्य तरह की फीस भी ली जाती है, उन पर अब रोक लग सकेगी।


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