प्ले स्कूलों को झुला रहे सरकार के दो विभाग

लापरवाही ॥ हाईकोर्ट के बाद कैबिनेट का फैसला भी फाइलों में किया बंद
उमा प्रजापति ॥ भोपाल
प्रदेश में कितने प्ले स्कूल हैं, इसका रिकार्ड न तो शासन के पास है और न ही जिम्मेदारी विभागों के पास। हालात यह है कि जिसकी मर्जी आए वह प्ले स्कूल खोलकर चला सकता है। इसके लिए न तो प्ले स्कूलों की ओर से सरकार को कोई टैक्स दिया जाता है और न ही इनकी मॉनीटरिंग की कोई व्यवस्था है। जबकिपिछले दिनों कैबिनेट की बैठक में प्री नर्सरी शिक्षा की जिम्मेदारी महिला एवं बाल विकास विभाग को देने का निर्णय लिया गया था। इसके बाद भी यह मामला महिला एवं बाल विकास और शिक्षा विभाग के बीच झूल रहा है।
जानकारी के अनुसार राजधानी सहित प्रदेश भर में एक दशक से प्ले स्कूलों का जाल बहुत फैल गया है। हालत यह है कि दो-दो कमरों और बेसमेंट में भी प्ले स्कूल चल रहे हैं। भोपाल में ही 1200 से ज्यादा प्ले स्कूल संचालित हो रहे हैं। लेकिन इन पर शिकांजा कसने के लिए कोई रेग्यूलेटरी वॉडी नहीं है।
हाईकोर्ट ने भी दिए
थे आदेश
सन् 2015 में इंदौर कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करने हुए प्ले स्कूलों को आरटीई के दायरे में लेने का फैसला सुनाते हुए सरकार को तीन माह में कमेटी बनाकर नियम तय करने के आदेश दिए थे। यह आदेश हाई कोर्ट न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की एकलपीठ ने करीब एक दर्जन प्राइवेट स्कूलों की याचिका खारिज करते हुए सुनाया गया था। कोर्ट ने कहा है कि बच्चा जबसे पढऩा शुरू करे, उस समय से ही उस पर आरटीई (शिक्षा का अधिकार) एक्ट लागू हो।
किसी के पास नहीं
है रिकार्ड
शिक्षा विभाग के सूत्रों की मांने तो प्ले स्कूलों के लिए भी पॉलेसी बनानी होगी ताकि स्कूल का रजिस्ट्रेशन हो और पूरा रिकॉर्ड सरकार के पास हो। फिलहाल शिक्षा विभाग के पास इसका कोई रिकार्ड नहीं है कि प्रदेश में कितने प्ले स्कूल हैं, यहां तक कि राजधानी का रिकार्ड भी किसी के पास नहीं है।
इन मामलों के बाद बाल आयोग ने शासन को दिया था सुझाव
कोलार रोड स्थित गिरधर परिसर के किडजी स्कूल में संचालक अनुतोष प्रताप सिंह पर यहां पढऩे वाली तीन साल की मासूम के साथ ज्यादती के आरोप लगे थे। वहीं 12 सितंबर 2017 को इंदौर के किड्स स्कूल में तीन लेडी टीचर्स द्वारा अश्लील हरकत करने का मामला सामने आया थ। यह दोंनों मामले सामने आने के बाद मध्य प्रदेश बाल संरक्षण आयोग ने प्ले स्कूलों में शिकंजा कसने और घरों में चल रहे प्ले स्कूलों को बंद कराने एवं स्कूलों के लिए नियम बनाने का सुझाव शासन को दिया था। लेकिन अब तक इसके लिए कोई सकारात्मक पहल शुरू नहीं हो सकी है।
प्ले स्कूलों के पॉइंट
ठ्ठ प्ले और प्री स्कूलों के लिए कोई रेगुलेटरी बॉडी नहीं है।
ठ्ठ ऐसे प्ले स्कूल भी हैं, जो 6 महीने के बच्चे को भी एडमिशन का ऑफर देते हैं।
ठ्ठ कुछ प्ले स्कूल तो मेन स्कूल से भी प्यादा फीस चार्ज करते हैं।
ठ्ठ इन स्कूलों के एडमिशन के लिए कोई नियम कायदे नहीं हैं।
ठ्ठ पैरेंट्स के इंटरब्यू की बात आम है, जबकि नर्सरी क्लास में एडमिशन के लिए इंटरव्यू व स्क्रीनिंग वैन है।
ठ्ठ कोई बिल्डिंग लॉज नहीं है।
ठ्ठ बच्चों की सुरक्षा को लेकर खास उपाए नहीं किए जाते।
जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं
शिक्षा विभाग के अनुसार बच्चों की उम्र 6 वर्ष से कम होने के कारण बाल विकास के पास का रिकार्ड होना चाहिए। वहीं बाल विकास के अधिकारियों ने स्पष्ट तौर पर कहा कि निजी स्कूल होने के नाते इन पर शिक्षा विभाग का कंट्रोल होना चाहिए। प्ले स्कूलों पर कंट्रोल कैसे हो और इन स्कूलों में सुरक्षा की दृष्टी से क्या उपाय हो इस संबंध में कोई निर्णय नहीं हो सका है।
शासकीय तौर पर प्ले स्कूलों को मान्यता नहीं दी जाती। रजिस्टार्ड न होने के कारण इनका रिकार्ड किसी के पास नहीं है। वैसे भी शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी 6 वर्ष से बड़े बच्चों की है। इससे छोटे बच्चे महिला एवं बाल विकास विभाग के अधीन आते हैं।
> धर्मेंद्र शर्मा, जिला शिक्षा अधिकारी, भोपाल
प्ले स्कूलों की सूची तैयार करने एवं उनके लिए स्कूलों की तरह ही नियम में लाने के लिए हमने शासन को सुझाव दिया था। इन स्कूलों का रजिस्ट्रेशन होना चाहिए। प्ले स्कूलों को लेकर नियम बनाने के लिए विधानसभा मामला रखने की बात भी कही गई थी। संभवत: इस बार इस मामलों को विधानसभा में रखा जाए।
> राघवेंद्र शर्मा, अध्यक्ष, मध्यप्रदेश बालसंरक्षण आयोग


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