होली खेलने पर भी टैक्स, मंहगे हुए रंग-गुलाल

जीएसटी ॥ रंगों के त्यौहार की रंगत फीकी
सच प्रतिनिधि ॥ भोपाल
फाल्गुन मास और रंगों का त्यौहार समीप होने गली-मोहल्लों एवं मंदिर में फाग गायन का दौर शुरू हो गया है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में फागोत्सव के तहत चंग व ढोल की थाप भी गूंजने लगी है। बाजारों में रंग, गुलाल के साथ ही विभिन्न प्रकार की पिचकारियों की दुकानें सज गई हैं। लेकिन इस बार होली के रंग को जीएसटी ने फीका किया है। अब तक कर मुक्त रंग-गुलाल एवं पिचकारी सरकार द्वारा जीएसटी के दायरे में शामिल किए जाने से इनके दाम गत वर्ष की तुलना में दस से पंंद्रह फीसदी महंगे है। ऐसे में इस बार रंगोत्सव फीका होता नजर आ रहा है। होली पर्व माह के पहले दिन होने से खरीददारी पर फर्क दिखने लगा। विभिन्न प्रकार की पिचकारियां बाजार में उपलब्ध हैं, लेकिन जीएसटी लगने से महंगी मिल रही है। पिचकारियों में 12 प्रतिशत एवं गुलाल व पक्के रंग पर 18 प्रतिशत जीएसटी की मार पड़ी हैं।
पिचकारी, रंग, गुलाल की बिक्री 30 प्रतिशत कम
जीएसटी ने होली के कारोबार का रंग बेरंग कर दिया है। एक तरफ वैट व्यवस्था के मुकाबले जीएसटी में कर की मार ज्यादा है तो दूसरी तरफ जीएसटी से उलझे कारोबारी बड़े स्तर पर खरीद से परहेज कर रहे हैं। जीएसटी के कारण बिना बिल वाले कारोबार पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है। कारोबारियों के मुताबिक इस बार पिचकारी, रंग, गुलाल की बिक्री पिछली होली से 30-40 प्रतिशत कम रह सकती है। तो स्थानीय बाजार जुमेराती से राजधानी सहित आसपास के क्षेत्रों में माल की सप्लाई होती है। इस बाजार में छोटे-बड़े करीब दर्जन भर से अधिक व्यापारी रंग,पिचकारी आदि का थोक कारोबार करते हैं। यहां पिचकारी 8 से लेकर 500 रुपए तक बिक रही है। सामान्य रंग के मुकाबले हर्बल रंग 6 गुना कीमत पर मिल रहा है। गुब्बारे का पैकेट 10 से 50 रुपए के बीच मिल रहा है और 12 मुखौटों का पैकेट 150 से 200 रुपए के हिसाब से मिल रहा है।
जीएसटी के कारण सामान
हुआ महंगा
थोक कारोबारी बताते हैं कि जीएसटी से परेशानी है। पहले पिचकारी जैसे होली के सामान पर 5 प्रतिशत वैट था,लेकिन अब 18 प्रतिशत जीएसटी लग रहा है। इस कारण यह सामान 10 से 15 प्रतिशत महंगा हो गया है इसीलिए कारोबारी मांग को भांप रहे हैं और ज्यादा खरीदारी की बजाय जरूरत भर का माल खरीद रहे हैं। इससे भी बिक्री सुस्त हो गई है।
चीन से बनी पिचकारी की मांग कम
व्यापारी बताते हैं कि ज्यादातर रंग-गुलाल गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश से आता है। उत्तर प्रदेश का हाथरस गुलाल का बड़ा केन्द्र माना जाता है। पिचकारी के मामले में 60-70 प्रतिशत माल चीन से आ रहा है लेकिन पिछले 2 साल में चीन से बनी पिचकारी की मांग घट रही है और महाराष्ट्र, गुजरात तथा दिल्ली में बनी पिचकारियां अधिक बिक रही हैं। 2 साल पहले तक 80-90 प्रतिशत चीन की पिचकारियां होती थी, लेकिन अब भारत में भी पिचकारियां बन रही हैं। इसके अलावा 2 साल से चीन के साथ टकराव के कारण चीनी सामान के बहिष्कार का माहौल है जिससे आयातित पिचकारी बेरंग हो रही है।


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