दूसरे पुल के लिए अपनी जमीन देने तैयार कोलारवासी, सरकारी भूमि बनी रोड़ा

सरकारी जमीन में अटकीं उपनगरों की दो सौगात
सच प्रतिनिधि ॥ भोपाल
जिस तरह कोलार उपनगर में आबादी बढ़ी है, उस हिसाब से यहां सुविधाएं न के बराबर मिल पा रही है। शहर को उपनगर से जोडऩे के लिए एकमात्र सर्वधर्म पुल जिसमें सुबह से शाम तक स्कूल वाहनों के चलते चक्काजाम की स्थिति निर्मित हो जाती है। वर्षों पुरानेे इस पुल का मेंटनेंस भी नहीं किया जा रहा है, जिससे खतरा बढ़ता जा रहा है। वहीं कोलार में एक दूसरा पुल जेके अस्पताल से शाहपुरा तक बनाया जाना है। इस पुल पर करीब 27 करोड़ की राशि खर्च होना है। फंड और भूमि के सीमांकन के चलते इसका कार्य प्रस्तावों में ही दबकर रह गया है। बताया जाता है कि दो लाख की आबादी के आंकड़े पर कोलार उपनगर पहुंचा है। यहां आवागमन के लिए वैकल्पिक मार्ग की कोई व्यवस्था नहीं हुई है। शाहपुरा और नए शहर की ओर आने के लिए अभी तक प्रशासन ने दूसरा रास्ता बनाने के लिए कोई पहल नहीं की है। घनी आबादी वाले इस उपनगर में नगर निगम द्वारा बड़े विकास कार्य नहीं कराए जा रहे है। इस क्षेत्र ने महापौर आलोक शर्मा ने पूरी तरह से दूरी बना रखी है। महापौर और क्षेत्रीय विधायक रामेश्वर शर्मा की पटरी न बैठ पाने का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है।
30 हजार लोग करते हैं आवाजाही
कोलार के सर्वधर्म पुल से प्रतिदिन करीब 30 हजार लोग आवागमन करते है। इस मार्ग से स्कूल-कालेजों की बसें भी निकलती है। कोलार से आगे ग्रामीण क्षेत्रों को जोडऩे के लिए यहीं एकमात्र रास्ता है। कोलार में जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों का उदासीन रवैया यह है कि वर्षों पुराने एकमात्र सर्वधर्म पुल से ही छोटे-बड़े वाहन गुजर रहे हैं। इस पुल की हालत भी जर्जर स्थिति में पहुंच गई है। इसका एक कारण यह भी माना जा रहा है कि यहां पर आने जाने के लिए इसके अलावा अन्य कोई वैकल्पिक मार्ग नहीं है।
हो सकता है हादसा
स्थानीय लोगों का कहना है कि कोलार में कभी कोई बड़ा हादसा हो जाए तो यहां भगदड़ मच जाएगी और आने-जाने के लिए लोगों को रास्ते ढूंढना पड़ेंगे। एकमात्र सर्वधर्म पुल से आवागमन प्रभावित हो रहा है। कई बार स्थानीय लोगों द्वारा जब विरोध प्रदर्शन किया जाता है तो वे सर्वधर्म पुल पर प्रदर्शन कर नाराजगी जताते हैं, इस दौरान भी अनेक बार वाहनों की लंबी कतार दिखाई देने लगती है और उपनगर के लोग आने-जाने में बंध जाते हैं।
जनप्रतिनिधि उदासीन
स्थानीय रहवासी लक्ष्मण सिंह ठाकुर का कहना है कि कोलार से नए शहर के लिए वैकल्पिक मार्ग की व्यवस्था की जानी चाहिए। उन्होंने बताया कि कोलार में जेके अस्पताल से शाहपुरा तिराहे तक एक पुल का निर्माण किया जाना है। पिछले कई महीनों से यह कार्य प्रस्तावों में ही दबकर रह गया। अभी तक यहां भूमि का सीमांकन नहीं हो पाया, जिससे जनता को संघर्ष करना पड़ रहा है। श्री सिंह ने मांग की है कि एक बड़ा पुल कोलार की कालोनियों से नए शहर की ओर जाने की ओर बनाया जाना चाहिए जिससे कोलार और शहर का संपर्क जुड़ सके।
कोलार के दूसरे पुल बनाने के लिए चर्चा की जा रही है। भूमि का सीमांकन होते ही काम आंरभ कराया जाएगा।
> भूपेन्द्र माली, एमआईसी सदस्य
‘सिंचाईÓ में उलझा भेल का सरकारी अस्पताल
भोपाल (सप्र)। गोविंदपुरा क्षेत्र में पिछले 30 दशक से बेकार पड़ी इरिगेशन की करीब 5 एकड़ भूमि जिसे स्वास्थ्य विभाग को देने के लिए शासन स्तर पर पत्र व्यवहार के बाद कोई निर्णय नहीं हो सका। बताया जाता है कि दो साल पहले क्षेत्रीय विधायक बाबूलाल गौर द्वारा शासन स्तर पर प्रस्ताव भेजा गया था कि निजामुद्दीन कालोनी क्षेत्र के समीप खाली पर पड़ी ऐरीकेशन विभाग की करीब 5 एकड़ भूमि पर सरकारी अस्पताल बनाने के लिए इसे स्वास्थ्य विभाग को दिया जाए। इस मामले को लेकर शासन द्वारा अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया जिससे यहां के बाशिंदों को सरकारी अस्पताल की सौगात नहीं मिल पा रही है। पांच लाख आबादी को सरकारी इलाज की सुविधा की 40 साल बाद भी संघर्ष करना पड़ रहा है। स्थानीय रहवासी रघुनंदन सिंह राजपूत ने बताया इस क्षेत्र में सरकारी भूमि है मगर विभागों की अनदेखी की जा रही है। शासन स्तर पर शासकीय अस्पताल का प्रस्ताव लंबे समय से ठंडे बस्ते में है। उन्होंने बताया कि गोविन्दपुरा विधानसभा क्षेत्र के ग्रामीण सहित करीब पांच लाख लोग आज भी चिकित्सा सुविधा से वंचित हैं। ग्रामीण सहित शहरी लोगों को इलाज की सुविधा से महरूम रहना पड़ रहा है। बताया जाता है कि कुछ वर्ष पूर्व इन्द्रपुरी स्थित ऐरीकेशन की जमीन के पास कुछ स्थान का चयन किया गया था। यह स्थान अब यहां की फोरलेन मार्ग से कुछ कदम दूरी पर है। इस स्थान पर प्रस्तावित शासकीय अस्पताल को बनाने की पहल करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव यहां देखने को मिल रहा है।
हमीदिया ही है विकल्प
शहरी के साथ ही ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को हमीदिया या फिर जयप्रकाश शासकीय अस्पताल पर ही निर्भर रहना पड़ता है। स्थानीय रहवासियों का कहना है कि चार दशक में इस क्षेत्र को इलाज की सुविधा से महरूम रखा गया है। कहने के लिए कुछ इलाकों में डिस्पेंसरी खोली गई हैं, मगर वहां समय पर चिकित्सक नहीं पहुंचते हैं। इस कारण यहां के रहवासियों को बेहतर इलाज के लिए निजी नर्सिंंग होम पर निर्भर रहना पड़ता है। सरकारी अस्पताल के लिए सरकार से पहल करने की मांग बाशिंदों ने की है।


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