वन विहार में जानवरों की ब्रीडिंग से तौबा

कई बार नाकाम रहा है प्रयोग
सच प्रतिनिधि ॥ भोपाल
वन विहार नेशनल पार्क को नेशनल जू अथॉरिटी ने बाघ , व्हाइट टाइटर और वन्य प्राणियों की ब्रीडिंग के लिए अनुमति दी है। लेकिन वन्य प्राणियों के स्वभाव को समझने में वन विहार प्रबंधन कामयाब नहीं हो सका है। जिससे जानवरों की ब्रीडिंग नहीं हो पा रही है। कई बार प्रयास करने की कोशिश की गई लेकिन सफलता हाथ नही लगी । लिहाजा इससे अभी वन विहार में वन्य प्राणी की ब्रीडिंग प्रक्रिया रोक दी गई है।
वन विहार नेशनल पार्क में वन्य प्राणियों का प्रजनन करवाना बंद हो चुका है। देश के नेशनल पार्कों में अव्वल रहने वाला वन विहार नेशनल पार्क वन्य प्राणियों का प्रजनन करवाने में विफल होता जा रहा है। वन विहार की डायरेक्टर समीता राजौरा का कहना है कि वन्य प्राणियों के प्रजनन करवाने के लिए कई बार प्रयास किए गए है। लेकिन वन्य प्राणियों के स्वभाव को समझा नहीं जा सका है। जिससे प्राणियों का प्रजनन करवाने में देरी हुई है। वहीं डायरेक्टर राजौरा ने बताया कि ऐसे से ही हम किसी जानवर में प्रयोग नहीं करते है। पहले डाक्टर जानवर की जांच करते है। उसके स्वभाव को समझते है। उसके बाद ही जानवर के अनुकूल नेचर होने पर ही प्रयास किए जाते है। हालांकि इस साल सर्दी के मौसम में कई बार प्रयास किया गया। लेकिन मिलाप के समय मेल और फीमेल तैयार नहीं थे। जिससे जानवरों का प्रजनन करवाने में विफल हुए है।
ब्रीडिंग में रिस्क होता है
वन्य प्राणी विशेषज्ञ अजय दुबे ने बताया कि नेशनल पार्क में ब्रीडिंग सेंटर होता है। जिसमें दुर्लभ प्रजाती के जानवरों का प्रजनन किया जाता है। ब्रीडिंग के समय जानवरों की सुरक्षा के साथ ही वन्य प्राणी विशेषज्ञों की जानकारी में और देखरेख से किया जाता है। इस दौरान मेल – फीमेल जानवरों को अकेले छोड़ दिया जाता है। इसमें सबसे बड़ी बात है, कि इससे जानवर हिसंक भी हो जाते है। इसके परिणाम घातक भी होते है। लेकिन जानवरों की ब्रीडिंग भी जरुरी है। मैं समझता हूं, कि ब्रीडिंग के समय में रिस्क होता है । अगर बेहतर वन्य विशेषज्ञों की निगरानी में ब्रीडिंग की जाए तो परिणाम अच्छे होते है।
केंद्रीय जू प्राधिकरण की है अनुमति
केंद्रीय जू अथॉरिटी ने देशभर के 512 चिडिय़ाघरों में से 73 चिडिय़ाघर, वन विहार, वन्य अभयारण्य को जंगली जानवरों के ब्रीडिंग सेंटर का दर्जा दे रखा है। लेकिन इन चिडिय़ाघरों में भी विडाल प्रजाति (शेर, बाघ, तेंदुए, जंगली बिल्लियों) को बढ़ाने में जितना काम वन विहार नेशनल पार्क में नहीं हुआ है, उससे ज्यादा काम इंदौर चिडिय़ाघर ने किया है।


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