देवी आराधना का महाअनुष्ठान

नौ दिन तक चलने वाले देवी आराधना के पर्व चैत्र नवरात्रि की आज यज्ञ और हवन के साथ पूर्णाहुति हो रही है। इन नौ दिनों में हर दिन देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। इस बार अष्टमी और नवमी तिथि एक ही दिन हैं। रविवार सुबह 8 बज कर 15 मिनट तक अष्टमी थी और नवमी तिथि 26 मार्च को सुबह सूर्योदय तक रहेगी। अष्टमी और नवमी पर पूजन, हवन, कन्याभोज एवं भंडारे का महत्व है।
महाअष्टमी मां गौरी का वंदन
महाअष्टमी मां गौरी का दिन है जो कि बेहद सरस, सुलभ और मोहक है। नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्य: फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों को सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दु:ख उसके पास कभी नहीं जाते।
इसलिए पड़ा महागौरी का नाम
मां पार्वती रूप में इन्होंने भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए बड़ी कठोर तपस्या की थी। इस कठोर तपस्या के कारण इनका शरीर एकदम काला पड़ गया। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर जब भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर हो उठा। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा।
नवमीं मां सिद्धदात्री की पूजा
कमल पर विराजमान और शेर की सवारी करने वाली मां सिद्धदात्री भक्तों को सिद्धी को देने वाली हैं। देवी भक्तों के अंदर की बुराइयों और अंधकार को दूर करती हैं और ज्ञान का प्रकाश देती हैं। इनकी पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय ब्रह्म महूर्त वेला है अर्थात प्रात: 4 बजे से 6 बजे के बीच का है।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व व वशित्व यह आठों सिद्धियां सिद्धिदात्री से ही उत्पन्न हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने सभी प्रकार सिद्धियों को पाने के लिए देवी सिद्धिदात्री की उपासना की थी। तब देवी ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी को सभी सिद्धियां दी थीं। तब शिव जी का आधा शरीर पुरुष का और आधा महिला का हो गया और शिवजी अर्धनारीश्वर कह लाए।


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