अफगानिस्तान में पाकिस्तान की दिलचस्पी इसलिए है अधिक, 1965 की लड़ाई को कभी भूल ना पाया

Pakistan Inclination Towards Afghanistan:  जिन्ना की जिद के बाद विश्व की राजनीतिक क्षितिज पर पाकिस्तान का उदय हुआ.पाकिस्तान(pakistan) के गठन के बाद से ही भारत के प्रति ऐसी मानसिकता से ग्रस्त हुआ जिसमें उसे लगता था कि उसके अपने मुल्क का विकास सिर्फ और सिर्फ भारत का अस्थिर रखकर किया जा सकता है. हालांकि पाकिस्तान की कोशिश बैकफायर कर गई. 1965, 1971 और 1999 उसके उदाहरण हैं. यहां हम बात करेंगे कि अफगानिस्तान(afghanistan) में पाकिस्तान की दिलचस्पी क्यों बढ़ गई. क्या पाकिस्तान को यह लगता था कि अफगानिस्तान के जरिए वो भारत की तरक्की(india growth news) में बाधा बन सकता है.

1980 के बाद अफगानिस्तान के प्रति बढ़ा झुकाव

1980 के दशक की शुरुआत थी और पाकिस्तान 1965 और 1971 (1965 india pakistan war)हार के सदमे से उबरने की कोशिश कर रहा था. इस्लामाबाद के नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी (islamabad national defense univeristy)में पहली बार इस सिद्धांत पर विचार किया गया कि मुल्क के रणनीतिकारों को अफगानिस्तान के बारे में सोचना चाहिए. यहीं से अफगानिस्तान के मामले में पाकिस्तान की दखल बढ़ने लगी. पाकिस्तान के रणनीतिककारों की सोच यह बनी कि काबुल में एक ऐसी सरकार होनी चाहिए जो उनके हितों की रक्षा कर सके लेकिन हकीकत में पाकिस्तान को जिस तरह का समर्थन मिलना चाहिए वो हासिल नहीं हुआ. ऐसा न होने के पीछे वजह भी थी दरअसल तालिबानियों ने यह साफ संदेश दिया कि वो किसी की कठपुतली नहीं हैं. हालांकि अफगानिस्तान को पाकिस्तान हमेशा खुद के लिए फायदेमंद मानता रहा.

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इजराइल का उदाहरण

अब सवाल यह है कि अगर किसी मुल्क का पड़ोसी मित्रवत व्यवहार ना रखे तो आगे का रास्ता क्या है. इसके जवाब में जानकार इजराइल का उदाहरण देते हैं. अपनी खुद की सीमा से आगे बढ़कर कुछ भूभाग को अपने कब्जे में लेना ताकि शक्ति संतुलन बना रहे. 1967 में इजराइल ने 6 दिन की लड़ाई में सिनाई प्रायद्वीप(sinani penninsula) को अपने कब्जे में कर लिया और उसके पीछे वजह यह थी कि दक्षिण की तरफ से अगर मिस्र की तरफ से कोई हमला हुआ तो बेहतर तरीके से जवाब दिया जा सके. इसका फायदा 1973 की योम- किपुर लड़ाई में नजर भी आया जब इजराइल की फौज ने सिनाई प्रायद्वीप के मितला और गिदी दर्रे में रोक लिया.

‘आक्रामक अंदाज में भारत को बढ़ना होगा’

पश्चिमी मोर्चे पर हम रेगिस्तानी क्षेत्र में जोखिम उठा सकते हैं. विशेष रूप से पानी की कमी के कारण दुश्मन( indian army reaction in desert area) के आक्रमण की गति खत्म हो जाएगी. हालांकि उत्तर की ओर आगे यह सच नहीं होगा. राजनीतिक और धार्मिक महत्व वाले प्रमुख जनसंख्या केंद्रों उदाहरण के लिए अमृतसर जो अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगभग 30 से अधिक किलोमीटर दूर है और दुश्मन की लंबी दूरी की तोपखाने की सीमा के भीतर है उसे हर कीमत पर बचाने की कोशिश करनी होगी. अगर अमृतसर को किसी तरह से नुकसान होता है तो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत(indian war strategy) की प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति होगी. इसलिए, दो रेगिस्तानों और मैदानों के लिए सैन्य रणनीतिया मौलिक रूप से भिन्न होंगी.


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