गोबिंद सिंह कैसे बने सिखों के दसवें गुरु

गुरु तेग बहादुर यानि गोबिंद सिंह के पिता जी सिखों के नौ वे धर्म गुरु थे। जब कश्मीरी पण्डितों को जबरदस्ती इस्लाम धर्म स्वीकार करने पर मजबूर किया जा रहा था तब गुरु तेगबहादुर जी ने इसका पुरजोर विरोध किया और हिन्दुओं की रक्षा की। उन्होंने खुद भी इस्लाम धर्म कबूल करने से इनकार कर दिया। इस कारण से उन्हे हिन्दुस्तान के बादशाह औरंगजेब नें चांदनी चौक विस्तार में उनका सिर कलम करवा दिया। इसी घटना के बाद उनके पुत्र गुरु गोबिंद सिंह सिखों के दसवे गुरु नियुक्त किए गए।
खालसा पन्थ स्थापना
खालसा शब्द का अर्थ शुद्धता होता है। मन वचन और कर्म से समाजसेवा के लिए कटिबद्ध व्यक्ति ही खुद को खालसापंथी कह सकता है। गुरु गोबिंद सिंह नें वर्ष 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी। गुरु गोबिंद सिंह को नीले घोड़े वाला भी कहा जाता था। चूँकि उनके पास एक नीला घोड़ा था। वह एक विचारक और उत्कृष्ट कवि भी थे। संगीत में भी उनकी विशेष रुचि थी। ऐसा कहा जाता है की उन्होंने इन वाद्य यंत्रों का आविष्कार किया था।


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