महात्मा बुद्ध की कहानी भावनाओं का महत्व

एक बार की बात है महात्मा बुद्ध मगध में कुछ दिन के लिए ठहरे हुए थे। उनके प्रवचन सुनने दूर-दूर से लोग आते थे। कुछ दिन ठहरने के बाद महात्मा बुद्ध ने दूसरी जगह जाने कि सूचना सबको दी। बस फिर क्या था, सब लोग वहां एकत्रित हो गए। महात्मा बुद्ध के जाने कि सूचना प्राप्त करते ही सब महात्मा बुद्ध को उपहार देने लगे और जिसकी जैसी इच्छा थी वो देने लगे।
महात्मा बुद्ध सब कुछ पास में ही रखवा रहे थे। तभी एक बूढी औरत वहां जूठा आम लेकर आई और बोली-
-मेरे पास जो भी पूँजी है यही है, इसे स्वीकार कर मुझे कृतार्थ करें।
महात्मा बुद्ध ने वो आम ले लिया और प्यार से खाने लगे। ये देख सब हैरान रह गए और उनमे से एक शिष्य बोला,
-प्रभु, आपको इतने लोगों ने भेंट दी। आपने सब अलग रखवा दिया और इस बूढी औरत के जूठे आम को इतने प्यार से खा रहें हैं।
तब महात्मा बुद्ध बोले,ं
-सब लोग भेंट इस मंशा से दे रहे हाँ की उनका कुछ भला होगा। और वो सिर्फ उतना दे रहे हैं जिससे उनको कोई नुकसान न हो। लेकिन उस औरत ने तो अपन सब कुछ दे दिया जो उसके पास था। उसने अपने बारे में कुछ भी नहीं सोचा। उसके इस कृत्य के पीछे उसकी सच्ची भावना थी। इसलिए मैंने वो जूठा आम खाया। यही भावनाओं का महत्त्व है। इसी तरह हम भी जब पूर्ण भावना से प्रभु के हो जाएँगे तो प्रभु स्वयं हमारा जीव धन्य हो जाता है।


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