भोपाल: हवा में घुलने लगा जहर, कोरोना के साथ ही इन बीमारियों से भी शहरवासियों को खतरा

भोपाल: अनलॉक 5 के बाद से राजधानी की आबोहवा बदलने लगी है. शहर की हवा में धूल और धुएं के प्रदूषण का जहर घुलना शुरू हो गया है. पिछले तीन दिन से पीएम-10 और पीएम-2.5 का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है. मई के बाद यह पहला मौका है जब भोपाल का एंबिएंट एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 100 के पार गया है. शुक्रवार को यह 118 आंका गया. इससे लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही है.

50 एक्यूआई की गुणवत्ता वाली हवा में सांस लेना सेहत के लिए अच्छा माना जाता है.100 एक्यूआई तक की हवा संतोषजनक मानी जाती है. 100 एक्यूआई पार होते ही यह प्रदूषित हवा की केटेगरी में आ जाती है. वहीं सरफेस लेवल पर ऑर्गन गैस का बढ़ता स्तर भी हवा की गुणवत्ता खराब कर रहा है. शुक्रवार को इसका अधिकतम स्तर 85 और दिनभर का औसत स्तर 69 एमसीएम पाया गया है.

मानसून की विदाई का वक्त
अक्टूबर शुरू होते ही शहर के मौसम में बदलाव भी साफ दिखने लगा है. मौसम वैज्ञानिकों की माने तो हवा में नमी कम हो गई. बादल भी छंट गए हैं. हवा का रुख भी दक्षिण-पश्चिमी से बदलकर उत्तर-पश्चिमी हो गया. इसके कारण रात के तापमान में 1.3 डिग्री की गिरावट हुई. गुरुवार के मुकाबले शुक्रवार को दिन के तापमान में 0.9 डिग्री का बढ़ोतरी हुई. ये मानसून की विदाई के पुख्ता संकेत हैं. मौसम वैज्ञानिक पीके साहा ने बताया कि रात का तापमान 21.6 डिग्री दर्ज किया गया, जो सामान्य रहा. बादल न होने से दिन में तेज धूप थी. इसी वजह से तापमान में बढ़ोतरी हुई. यह सामान्य से 1 डिग्री ज्यादा यानी 34.3 दर्ज किया गया.

क्या है PM 2.5?
PM 2.5, पीएम कण के बारे में बताता है और 2.5 या 10 कण के आकार के बारे में बताता है. PM2.5 सबसे छोटे वायु कणों में से होते हैं और इनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर के आसपास होता है. अति सूक्ष्म कण होने की वजह से ये PM2.5 कण आसानी से हमारे शरीर के अंदर चले जाते हैं और हमारे लीवर, लंग्स आदि को प्रभावित करने लगते हैं. PM 10 के कणों का सामान्य लेवल 100 माइक्रो ग्राम क्यूाबिक मीटर (एमजीसीएम) होना चाहिए.

अस्थमा और दिल से जुड़ी बीमारी का खतरा
PM10 कणों को रेस्पॉयरेबल पर्टिकुलेट मैटर भी कहा जाता है. ये धूल के कणों के आकार तक के होते हैं. फैक्ट्रियों, सड़क या अन्य निर्माण कार्यों के समय ऐसे कण बड़ी मात्रा में निकलते हैं. PM2.5 कण सूक्ष्म आकार के होने के कारण आसानी से हमारी सांसों के जरिये अंदर जाकर हमारे फेफड़ों और लीवर आदि को प्रभावित करने लगते हैं. PM2.5 कणों के कारण खांसी, जुकाम आदि समस्याओं से लेकर अस्थमा और दिल से जुड़ी बीमारियां तक होने का खतरा होता है. PM2.5 कण डीजल वाहनों आदि से कार्बन कणों के साथ भी निकलते हैं जिनसे कैंसर तक होने का खतरा होता है, एक अनुमान के अनुसार PM2.4 के कारण हर साल दुनियाभर में औसतन 31 लाख लोगों की मृत्यु होती है.


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