Bihar Politics: खत्म होगी ‘दोस्त’ उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति! इस एक सबूत के इंतजार में नीतीश कुमार

Nitish Kumar vs Upendra Kushwaha: बिहार में जनता दल युनाइटेड (JDU) के अंदर चल रही सियासी लड़ाई खत्म होती नजर नहीं आ रही है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा के बीच की खाई और चौड़ी होती जा रही है. दोनों एक दूसरे पर वार-पलटवार करने का कोई मौका नहीं चूक रहे हैं. इस सियासी लड़ाई के बीच नीतीश कुमार अब उस एक सबूत के इंतजार में हैं जिससे वो उपेंद्र कुशवाहा को जेडीयू से निपटा सकें. हालांकि, उपेंद्र कुशवाहा का कहना है कि वो नीतीश कुमार से बात करने के लिए तैयार हैं लेकिन वो बात करने के लिए बुलाते ही नहीं. वहीं, नीतीश का कहना है कि कुशवाहा को आकर बात करना चाहिए और अपनी मंशा को स्पष्ट रूप से पार्टी के सामने रखना चाहिए. यानी दोनों बात तो करना चाहते हैं लेकिन बात कोई नहीं करता.

अब सबकी निगाहें 20 फरवरी को होने वाली उपेंद्र कुशवाहा की मीटिंग पर टिकी हैं. इस मीटिंग में जेडीयू के कई नेताओं के शामिल होने की संभावना भी जताई जा रही है. वहीं नीतीश कुमार को भी कुशवाहा के इसी चिंतन शिविर का इंतजार है. दरअसल, ये चिंतन शिविर जेडीयू के आधिकारिक घोषणा के मुताबिक नहीं हो रही है और इसीलिए पार्टी उस मौके की तलाश में है जिसमें उपेंद्र कुशवाहा पार्टी विरोधी गतिविधियों में पाए जाएं. यहां सवाल उठता है कि जेडीयू ऐसा क्यों चाहती है, आखिर नीतीश का प्लान क्या है?

ऐसे खत्म होगी कुशवाहा की पारी!

कुशवाहा राज्यपाल कोटे से बिहार विधान परिषद के सदस्य बने थे. उन्हें राज्यपाल द्वारा मनोनित करके एमएलसी बनाया गया था. इससे पहले कुशवाहा ने अपनी पार्टी का जेडीयू में विलय कर लिया था और खुद जेडीयू की सदस्यता ले ली थी. नियम ये है कि एमएलसी जिस दल के होते हैं, उन्हें उस पार्टी के सभी प्रोटोकॉल और व्हिप को मानने के लिए बाध्य होते हैं. अगर वो पार्टी के नियमों को नहीं मानते हैं तो पार्टी के पास अधिकार है कि वो उनकी सदस्यता को रद्द करने के लिए राज्यपाल से आवेदन कर सकती है और उनकी सदस्यता खत्म करवा सकती है. 

नीतीश कुमार इसी इंतजार में हैं कि 19 और 20 फरवरी को बुलाई गई बैठक में उपेंद्र कुशवाहा पार्टी के खिलाफ जाकर कुछ ऐसा करें कि जेडीयू उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त पाए जाने के आरोप में पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा सकें. साथ ही उनकी सदस्यता भी खत्म करवा सके. दरअसल, जेडीयू इस कदम को उठाने से पहले सभी पुख्ता सबूतों को एकत्रित कर लेना चाहती है, जिससे कुशवाहा को किनारे करने में उसे किसी प्रकार की दिक्कत न हो.

क्या बिखर जाएगी जेडीयू?
कुशवाहा पर कार्रवाई के साथ ही क्या बिखर जाएगी जेडीयू…? इस सवाल को लेकर भी सियासी गलियारे में चर्चा तेज है. इसके पीछे की वजह से पार्टी के अंदर की गुटबाजी, जो गाहे-बगाहे दिखती रहती है. हाल ही में जेडीयू के एमएलसी रामेश्वर महतो उपेंद्र कुशवाहा के पक्ष में बल्लेबाजी करते नजर आए थे. उन्होंने नीतीश सरकार के मंत्री अशोक चौधरी पर जमकर निशाना साधा और कहा कि कांग्रेस से जेडीयू में आने के बाद मंत्री बनने वाले चौधरी ने पार्टी को कमजोर करने का काम किया है, कुशवाहा ने नहीं. 

महतो ने कहा कि कुशवाहा ने हमेशा पार्टी के हित में काम किया है और अभी भी कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि पार्टी के अंदर कई ऐसे नेता घुस आए हैं जो पार्टी को अंदर से खोखला करने का काम कर रहे हैं. चौधरी का ये बयान ये बताने के लिए काफी है कि जेडीयू के अंदर ही गुटबाजी जोरो पर है और कुशवाहा पर कार्रवाई के साथ ही ये गुटबाजी उभरकर सामने आ सकती है. इससे महागठबंधन को बड़ा नुकसान पहुंच सकता है.

तेजस्वी की स्वीकार्यता पर तकरार!
दरअसल, जेडीयू में एक धड़ा ऐसा भी जो किसी भी शर्त पर तेजस्वी को अपना नेता मानने को तैयार नहीं है. कुशवाहा इसी गुट के नेता बताए जाते हैं, क्योंकि उन्होंने हमेशा से बिना नाम लिए कहा कि कुछ लोग पार्टी को कमजोर करने में लगे हैं. उनका सीधा इशारा तेजस्वी की ओर रहा है. राजनीतिक पंडितों की मानें तो तेजस्वी के नेतृत्व में अगला विधानसभा चुनाव लड़ने और जेडीयू का आरजेडी में विलय की बात से बड़ी संख्या में जेडीयू के नेता नाराज हैं. वो नहीं चाहते कि तेजस्वी को उनका नेता बनाया जाए.


facebook - जनसम्पर्क
facebook - जनसम्पर्क - संयुक्त संचालक
twitter - जनसम्पर्क
twitter - जनसम्पर्क - संयुक्त संचालक
जिला प्रशासन इंदौर और शासन की दैनंदिन गतिविधियों और अपडेट के लिए फ़ॉलो करें