केंद्रीय मंत्री का दबाव, बाघों की कब्रगाह जाएंगे प्रदेश के टाइगर

प्रशासनिक संवाददाता ॥ भोपाल
मप्र में बाघों को लेकर फिर से बवाल मचने की स्थिति बन रही है। मप्र से उड़ीसा के सतकोसिया टाईगर रिजर्व भेजे जा रहे छह बाघों के मामले में नया खुलासा हुआ है तो गुजरात से गिर शेर लाने से पहले मप्र सरकार ने केन्द्र ने 10 करोड़ रूपए व्यवस्थाएं बनाने के लिए मांगे हैं। बाघों की सुरक्षा, शिकार और उनके विस्थापन को लेकर मध्यप्रदेश में अक्सर घमासान की स्थिति बनती है। मप्र में इस चुनावी साल में बाघ और शेर भी एक चुनावी मुद्दा बनने जा रहे हैं।
मप्र ने किया छह बाघ देने का वादा
मप्र सरकार ने उड़ीसा सरकार को छह बाघ देने पर अपनी सहमति दी है। मप्र से उड़ीसा बाघों को शिफ्ट करने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। मप्र से पहला बाघ अप्रैल के अंतिम सप्ताह में उड़ीसा के सतकोसिया टाईगर रिजर्व में शिफ्ट होगा। उड़ीसा और मध्यप्रदेश के वाइल्डलाइफ अफसरों ने इसकी तैयारी कर ली है। 15 अप्रैल को उड़ीसा के वाइल्डलाइफ अफसरों के साथ विशेषज्ञ टीम मप्र के कान्हा टाईगर रिजर्व में अपना कैंप लगाएगी। मप्र से पहला बाघ कान्हा टाईगर रिजर्व से उड़ीसा के सतकोसिया टाईगर रिजर्व को भेजा जाएगा। इस बीच आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे ने एक नया खुलासा करते हुए इस मामले में पेंच फंसा दिया है। दुबे ने कहा कि मध्यप्रदेश से राज्यसभा सांसद बनाए गए केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान उड़ीसा से है। वे अपने राज्य में मप्र के बाघों को जबरिया ले जाने की कोशिश में हैं। दुबे ने कहा कि उड़ीसा का सतकोसिया टाईगर रिजर्व शिकार और अतिक्रमण के लिए कुख्यात है। इस टाईगर रिजर्व में पहले 45 बाघ थे लेकिन अब केवल दो बाघ बचे हैं। पिछले सप्ताह उड़ीसा के वाइल्ड लाइफ अफसरों का एक दल मप्र आकर जा चुका है। इस दल ने मप्र के पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ जीतेंद्र अग्रवाल सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक बाघ विस्थापन के सभी पहलुओं पर व्यापक चर्चा कर अप्रैल के अंतिम सप्ताह में एक बाघ ले जाने का निर्णय लिया है।
बाघों को मौत के मुंह में धकेल रही मध्यप्रदेश सरकार
दुबे ने आरोप लगाया केन्द्रीय मंत्री के व्यवसायिक हितों के लिए बांधवगढ़, कान्हा और पन्ना के छह बाघों को मप्र सरकार मौत के मुंह में धकेल रही है। दुबे ने कहा कि जब तक सतकोसिया टाईगर जिरर्व में सुरक्षा व्यवस्था ठीक नहीं होगी और जब तक गुजरात से कूनो पालपुर में शेर नहीं लाए जाएंगे तब तक वे किसी भी स्थिति में मप्र के बाघों को उड़ीसा नहीं जाने देंगे।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भाजपा की मप्र सरकार गुजरात की भाजपा सरकार से एशियाटिक शेर लाने में प्रधानमंत्री मोदी जी के खौफ से गूंगी है और पूंछ दबाकर कायरता की मिसाल कायम कर रही है। वहीं एक केंद्रीय मंत्री के व्यावसायिक हितों के लाभ के लिए मप्र के छह बाघों को उड़ीसा भेजकर मौत में धकेल रही है। हम मप्र के बाघों को नहीं जाने देंगे।
अजय दुबे, आरटीआई एक्टिविस्ट
इधर कूनो के स्टॉफ की ट्रेनिंग को मांगे दस करोड़
इधर कूनो पालपुर में गुजरात के बब्बर शेरों को लाने में भले ही अभी कईपेंच फंसे हैं लेकिन मप्र सरकार भी अब तक कूनो पालपुर में इन शेरों को बसाने के लिए आवश्यक इंतजाम भी नहीं कर पाई है। मप्र सरकार के वन विभाग ने गुजरात के शेरों से पहले इस वित्तीय वर्ष में केन्द्र सरकार से 10 करोड़ रूपए मांगे हैं। इससे पिछले वित्तीय वर्ष में 70 करोड़ की राशि व्यवस्थापन और दूसरे व्यवस्थाओं के लिए मांगी गई थी। मप्र सरकार का कहना है कि अभी कूनो पालपुर से एक गांव की शिफ्टिंग होना बाकी है। गांव के विस्थापन पर खर्च होने वाली राशि तो राज्य सरकार अपने बजट से करने की तैयारी कर रही है लेकिन गिर के शेरों की सुरक्षा और देखभाल में लगने वाले अमले कीट्रेनिंग और बाड़ा बनाने जैसे कामों के लिए उसे 10 करोड़ रूपयों की जरूरत है। इस राशि से कूनो पालपुर में अस्पताल और डॉक्टरों के घर भी बनाए जाने हैं। बताया जाता है कि पिछले वित्तीय वर्ष में कूनो पालपुर में गिर के शेरों के विस्थापन के लिए मांगी गई 70 करोड़ की राशि भी मप्र को पूरी नहीं मिली है, इसलिए वहां कईकाम अधूरे पड़े हैं। हाल ही में वन विभाग ने 10 करोड़ का प्रस्ताव बनाकर केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भेजा है। इस राशि के मिलने के बाद ही कूनो पालपुर में आवश्यक व्यवस्थाओं के इंतजाम होंगे। दूसरी तरफ गुजरात से कूनो पालपुर तक शेरों को लाने में लगातार हो रही देरी के बीच सुप्रीम कोर्टके निर्देश पर बनी कमेटी की एक बैठक पिछले सप्ताह दिल्ली में हो चुकी है। इस कमेटी की बैठक में मप्र में भी गुजरात की तरह ही एक सब कमेटी बनाने की बात गुजरात की तरफ से आई थी लेकिन मप्र के वन अफसरों ने कहा कि राज्य में पहले से एक सब कमेटी है।
कूनो पालपुर में स्टाफ की ट्रेनिंग कराने, बाड़ा बनाने, डॉक्टरों के घर और अस्पताल भवन निर्माण के लिए 10 करोड़ की राशि केन्द्र सरकार से मांगी गई है।
जीतेन्द्र अग्रवाल, पीसीसीएफ, वाइल्डलाइफ


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