तीस साल बाद अब वन नीति में होगा बदलाव

विशेष संवाददाता ॥ भोपाल
देश की वन नीति में तीस साल बाद बदलाव होने जा रहा है। केंद्र सरकार अब जल्द ही नई वन नीति लाने जा रही है। नए ड्राफ्ट में क्लाइमेंट चेंज, ग्रीन कवर में कमी और आबादी के क्षेत्र में जंगली पशुओं के घुस आने जैसी नई उभरी समस्याओं को भी शामिल किया जाएगा। जिसमें स्थायी वन प्रबंधन के जरिए क्लाइमेट चेंज की समस्या से निपटने का समाधान पेश किया है।
वन माफियाओं पर सख्ती बरतने के साथ ही पीपीपी मोड पर जंगल विकसित किए जाने की तैयारी है। खासतौर से शहरी क्षेत्रों में पेड़ काटने के नियमों को कठिन किया जा रहा है। इस संबंध में केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने नई वन नीति का ड्राफ्ट जारी किया है। राज्य सरकार से 14 अप्रैल तक सुझाव मांगे हैं। नई नीति के तहत वैज्ञानिक प्रक्रिया के जरिए देश के एक तिहाई हिस्से को वन क्षेत्र बनाने और उसकी रक्षा के लिए कड़े नियमों के पालन पर जोर दिया जाएगा। यह नई नीति 1988 की वन नीति की जगह लेगी। नई पॉलिसी में पर्यावरण संतुलन और स्थिरता के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उभरी क्लाइमेट चेंज जैसी समस्याओं को भी कवर किया जाएगा। मंत्रालय ने इस प्रस्ताव पर पर्यावरण सेस को जगह नहीं दी है, लेकिन कई ऐसे क्लॉज शामिल किए हैं, जो पहले विवादित रहे हैं। इस नई पॉलिसी में वनों के विकास के लिए पीपीपी मॉडल को भी लागू करने का प्रस्ताव है। ड्राफ्ट के मुताबिक, वनों के संरक्षण और उनमें वृद्धि के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप को लागू किया जाएगा। यह नीति वन निगमों के क्षेत्र और उनके दायरे से बाहर भी लागू होगी। इस प्रस्ताव पर पर्यावरणविदों को ऐतराज भी हो सकता है, जो वन संरक्षण में निजी सेक्टर के दखल का विरोध करते रहे हैं। ड्राफ्ट के मुताबिक,इसमें पेड़ काटने के नियम बहुत कठोर होंगे। शहरों में वन तैयार करने वाली समितियों को सरकार पौधरोपण के लिए मानदेय देगी। इसके अलावा तालाबों और नदियों के कैचमेंट एरिया में प्लांटेशन का प्लान हर साल तैयार होगा। इस ड्रॉफ्ट में पीपीपी मोड पर नए वन क्षेत्र तैयार करने का प्रस्ताव भी है। इसके पहले यह नीति 198 8 में बनाई गई थी। नई नीति में वन क्षेत्र में रहने वाले लोगों के संरक्षण और विकास का भी ध्यान रखा गया है। इसके लिए केंद्र में नेशनल और प्रदेश में स्टेट स्तर का बोर्ड बनाया जाएगा, जिनके अध्यक्ष वन एवं पर्यावरण मंत्री होंगे। पर्यावरण संतुलन के लिए सभी शहरों के कुछ क्षेत्रों में शहरी वन तैयार किया जाएगा। इसके अलावा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट (आईआईएफएम) से भी इस नीति पर सुझाव मांगे गए हैं।
पौधरोपण के टारगेट में तब्दीली
ड्रॉफ्ट में वन की अवैध कटाई को देखते हुए सभी राज्यों को नेशनली डिटरमिनेटेड कंट्रीब्यूशन टारगेट (एनडीसीटी) के अनुसार पौधरोपण करने के लिए कहा गया है। इसके आधार राज्य वनों की सुरक्षा, वन प्रबंधन और हर साल पौधरोपण के लिए आंकड़े तय करेंगे। सरकारों को एक लक्ष्य निर्धारित करना है कि उन्हें वर्ष 2030 तक कितनी संख्या में पेड़ लगाना है। उन्हें जीवित रखने के लिए क्या प्रयास किए जाएंगे।
क्लाइमेट चेंज का कराएं अध्ययन
नई वन नीति के ड्राफ्ट में यह भी कहा गया है 198 8 से अभी तक आए क्लाइमेट चेंज का अध्ययन कराया जाए। सभी राज्यों में कम्युनिटी फॉरेस्ट मैनेजमेंट मिशन बनाया जाए। यह मिशन वन क्षेत्र में रहने वाले लोगों के हकों की बात करेगा। उनकी समस्याएं सुनेगा। उन्हें जड़ी-बूटी, चिरोंजी, गोंद सहित तमाम वनोपज की उचित कीमत दिलाने की दिशा में काम करेगा। वन क्षेत्रों में आग को नियंत्रण करने और रोकने के लिए सरकार को एक कार्ययोजना तैयार करना होगा। यदि वन क्षेत्र में कभी आग लगती है तो उसकी जिम्मेदारी भी तय करनी होगी।
पहले यह था नियम
शहरी क्षेत्रों में पेड़ काटने के लिए नगरीय निकाय को आवेदन देना पड़ता है। इसमें पेड़ काटने का उचित कारण भी बताना पड़ता है। अन्यथा आवेदन निरस्त कर दिया जाता है। एक पेड़ काटने के लिए चार पेड़ के मान से प्रति पेड़ 1500 रुपए राजधानी परियोजना प्रशासन में जमा करना पड़ता है।


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