आल्हा-उदल करते हैं मां का श्रृंगार, दखल दिया तो सजा तय

आज भी आल्हा और उदल माँ शारदा की पूजा अर्चना करने के लिए इस मंदिर में आते है। यहाँ के स्थानीय निवासियों के अनुसार रात के 2 से 5 बजे तक मंदिर के द्वार बंद करने का भी यही कारण है। इस समय आल्हा उदल माता का श्रृंगार अपने हाथों से करते है और फिर उसके बाद माता की प्रथम पूजा भी ये दोनों भाई ही करते है। इस दौरान यदि कोई भी इन्हें देखने के लिए या फिर इनकी पूजा में खलल डालने का काम करता है तो वो मृत्यु को प्राप्त होता है।
मध्यप्रदेश के सतना जिले में मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का शक्तिपीठ कहा जाता है। मैहर का मतलब है मां का हार। माना जाता है कि यहां मां सती का हार गिरा था इसीलिए इसकी गणना शक्तिपीठों में की जाती है। करीब 1,063 सीढिय़ां चढऩे के बाद माता के दर्शन होते हैं। पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है।
कहते हैं कि दोनों भाइयों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदादेवी के इस मंदिर की खोज की थी। आल्हा ने यहां 12 वर्षों तक माता की तपस्या की थी। आल्हा माता को शारदा माई कहकर पुकारा करते थे इसीलिए प्रचलन में उनका नाम शारदा माई हो गया। इसके अलावा, ये भी मान्यता है कि यहां पर सर्वप्रथम आदिगुरु शंकराचार्य ने 9वीं-10वीं शताब्दी में पूजा-अर्चना की थी। माता शारदा की मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी।
आज भी आल्हा करते हैं पहले श्रृंगार
इस मंदिर की पवित्रता का अंदाजा महज इस बात से लगाया जा सकता है कि अभी भी आल्हा मां शारदा की पूजा करने सुबह पहुंचते हैं। मैहर मंदिर के महंत बताते हैं कि अभी भी मां का पहला श्रृंगार आल्हा ही करते हैं और जब ब्रह्म मुहूर्त में शारदा मंदिर के पट खोले जाते हैं तो पूजा की हुई मिलती है। इस रहस्य को सुलझाने हेतु वैज्ञानिकों की टीम भी डेरा जमा चुकी है लेकिन रहस्य अभी भी बरकरार है।
कौन थे आल्हा
आल्हा और ऊदल दो भाई थे। ये बुन्देलखण्ड के महोबा के वीर योद्धा और परमार के सामंत थे। कालिंजर के राजा परमार के दरबार में जगनिक नाम के एक कवि ने आल्हा खण्ड नामक एक काव्य रचा था उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है। इस ग्रंथ में दों वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है। आखरी लड़ाई उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ लड़ी थी। मां शारदा माई के भक्त आल्हा आज भी करते हैं मां की पूजा और आरती। जो इस पर विश्वास नहीं करता वे अपनी आंखों से जाकर देख सकता है।
रात में दर्शन करना है मना
इस मंदिर में अब तक जो भी व्यक्ति रात में रूका है, उसने अपने प्राण त्याग दिए। इस पीछे भी एक कहानी है। स्थानीय निवासियों के अनुसार आल्हा और उदल दो भाई थे, वे माता के भक्त थे। उन्होंने ही पहाड़ी पर मां के मंदिर की तलाश की थी। वे मां के भक्त थे इसलिए उन्होंने 12 साल मां की कठोर तपस्या की। मां उनकी तपस्या से खुश हो गई और उन्होंने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था। कहा जाता है कि रात में दोनों भाई मां के दर्शन के लिए आते हैं और मां की भक्ति में लीन हो जात हैं। इस वजह से यहां रात में भक्तों को जाने की आज्ञा नहीं है। अगर कोई भक्त चोरी-छुपे उन्हें देखने की कोशिश करता है तो उसे अपने प्राण खोने पड़ जाते हैं। यहाँ माता के साथ ही काल भैरवी, भगवान हनुमान, देवी काली, देवी दुर्गा, गौरी-शंकर, शेष नाग और ब्रह्म देव की भी पूजा की जाती है। ये मंदिर काफी ऊंचाई पर स्थित है, इसलिए भक्तों को मां के दर्शन करने के लिए 1063 सीढिय़ों का सफर तय करना पड़ता है। वैसे जो श्रद्धालु सीढिय़ा से जाने में असमर्थ है, उनके लिए यहां रोपवे की भी व्यवस्था है। यहाँ पहाडिय़ों के बीच एक छोटा सा मार्केट भी है। हर साल काफी संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं।
मंदिर बंद होने के बाद अंदर से आती है घंटी और पूजा करने की आवाज
मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले में मैहर की माता शारदा का प्रसिद्ध मंदिर है। मान्यता है कि शाम की आरती होने के बाद जब मंदिर के कपाट बंद करके सभी पुजारी नीचे आ जाते हैं तब यहां मंदिर के अंदर से घंटी और पूजा करने की आवाज आती है। कहते हैं कि मां के भक्त आल्हा अभी भी पूजा करने आते हैं। अक्सर सुबह की आरती वे ही करते हैं।
यहाँ गिरा था माँ का हार
इस मंदिर का निर्माण कैसे हुआ, इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है। पंडितों के अनुसार जब भगवार शंकर का अपमान किया गया था तो माता सती ने अग्नि कुंड में कूदकर अपनी आहुति दे दी थी। इस बात से भगवान शंकर काफी गुस्सा हो गए और उन्होंने माता के शरीर को कुंड में से निकाल लिया था। गुस्से में भगवान शिव तांडव करने लगे। इस वजह से मां का शरीर 52 भागों में विभाजित हो गया। जहां जहां भी उनके अंग गिरे वहां मंदिरों का निर्माण किया। इस जगह मां का हार गिर था। इसलिए इसे मैहर माता का मंदिर का निर्माण किया गया।
रोपवे की व्यवस्था
मध्यप्रदेश के सतना जिला अंतर्गत मैहर नगर से 5 किमी. दूर त्रिकूट पर्वत पर मां शारदा का मंदिर है। ज्यादातर भक्त 1063 सीढिय़ां लांघ कर माता के दर्शन करने जाते हैं। हालांकि अब पहाड़ा वाली माता के दर पर पहुंचने के लिए शासन द्वारा रोप-वे की व्यवस्था बनाई गई है। मैहर में रोप-वे का शिलान्यास वर्ष 2001 में तत्कालीन केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्व. अर्जुन सिंह ने किया था। यह रोप-वे मार्ग आम यात्रियों के लिए सिंतबर 2009 में खोल दिया गया।यहां रूक्क.क्क्रञ्जक्रढ्ढ्य्र.ष्टह्ररू, प्रदेश के ऐसे मंदिरों के बारे में बता रही है। जहां रोप-वे की व्यवस्था बनाई गई है। जिनमे सलकनपुर भोपाल, मैहर शारदा मंदिर, भेड़ाघाट जबलपुर, जैन मंदिर टेकरी देवास शामिल है। पयर्टन विभाग द्वारा चित्रकूट हनुमान धारा में एक रोप-वे प्रस्तावित किया है जिसका निमार्ण चल रहा है। वहीं कामदगिरी परिक्रमा पथ पर पडऩे वाली लक्ष्मण पहाड़ी पर पर यूपी सरकार द्वारा रोप-वे लगवाया गया है। जो एमपी के हिस्से में आने वाले चित्रकूट से लगा हुआ है।
25 ट्रालियों में जाते हैं 100 भक्त
रोप-वे के प्रबंधक मुन्ना सिंह ने बताया कि मैहर वाली माता के दर्शन कराने के लिए 25 ट्रालियां लगाई गई है। एक ट्राली में एक साथ 4 भक्तों की बैठने की व्यवस्था है। जिससे एक चक्कर में 100 भक्त नीचे से ऊपर जाते है। जो क्रमश: उपर से नीचे की ओर घूमती रहती है। एसडीएम से परमीशन लेकर साल में एक दो बार मेंटीनेंश किया जाता है। उस समय सिर्फ एक दो दिन रोप-वे बंद रहता है।
कैसे पड़ा मैहर नाम
जनरुतियों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मैहर नगर का नाम मां शारदा मंदिर के कारण ही अस्तित्व में आया। हिन्दू श्रद्धालुजन देवी को मां अथवा माई के रूप में परंपरा से संबोधित करते चले आ रहे हैं। माई का घर होने के कारण पहले माई घर तथा इसके उपरांत इस नगर को मैहर के नाम से संबोधित किया जाने लगा।
जब खुला था क्रोध में तीसरा नेत्र
भगवान शंकर को जब इसका पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया और यज्ञ का नाश हो गया। भगवान शंकर ने माता सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव करने लगे। ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने ही सती के अंग को बावन भागों में विभाजित कर दिया।
कैसे पहुंचें मंदिर तक
ठ्ठ हवाई यात्रा- सतना से 160 किलोमीटर की दूरी पर जबलपुर हवाई अड्डा है, और 140 किलोमीटर की दूरी पर खजुराहो हवाई अड्डा है। इस के बाद, सतना के लिए बाकी यात्रा सड़क मार्ग से की जा सकती है।
ठ्ठ रेल मार्ग- भारत में कई ट्रेनों के माध्यम से आप मैहर स्टेशन तक पहुँच सकते हैं।
ठ्ठ सड़क यात्रा- मैहर जिला राज्य के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। आप वहां बस या खुद के वाहन से पहुँच सकते हैं।


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