गुलमर्ग: सी लेवल (Sea Level) से 10000 फीट की ऊंचाई पर 1948 में स्थापित हुआ सेना का High Altitude Warfare School (HAWS) स्कूल आज दुनिया के बेहतरीन स्कूलों में गिना जाता है. इस स्कूल ने आज तक देश को बेहतरीन जांबाज सिपाही और योद्धा दिए हैं और आगे भी देने की कोशिश में जुटा है. इस स्कूल में ट्रेनिंग ले रहे जवानों के लिए दुनिया के बेहतरीन उपकरण और बेहतरीन सिखाने वाले मौजूद हैं. स्कूल में ट्रेनिंग पाने वाले सैनिक 20000 फीट तक की ऊंचाई पर बर्फ के बीच बैटल फील्ड में रह सकते हैं और दुश्मन से लोहा ले सकते हैं. इस स्कूल केवल देश ही नहीं, बल्कि विदेशों के कई सैनिकों ने ट्रेनिंग ली है. स्कूल में विंटर वॉरफेयर ट्रेनिंग के अलावा माउंटेन वॉरफेयर की ट्रेनिंग दी जाती है. आज तक इस स्कूल में अमेरिका सहित 18 देशों के सेना के जवानों ने ट्रेनिंग हासिल की है.
वॉरफेयर स्कूल के इंस्ट्रक्टर मेजर सलीम जफर कहते हैं, ” हाई अल्टीट्यूड स्कूल में हम ट्रेनिंग देते हैं कि एक सैनिक कैसे ऑपरेट करेगा. मिलिट्री स्कीयर होने के नाते हम उन्हें ऊंचे बर्फीले इलाकों में लोड लेकर स्की करने की ट्रेनिंग देते हैं. यह स्कूल अपने स्टूडेंट को सवाईवल ट्रेनिंग भी देता है जिसमें एक ट्रेनी को इग्लो में रहना पड़ता हैं. यहां उसका खाना-पीना सब बर्फ में ही बनता है और इसी में रहना पड़ता है. हम उन्हें एडवांस ट्रेनिंग भी देते हैं जिसे वो दुर्गम इलाकों में ग्लेशियर में रहने के लिए सक्षम होता है. हमने जवानों को हर स्थिति के लिए सक्षम करते हैं.
सबसे पहले जो जवान इस ट्रेनिंग कोर्स के लिए चुने जाते हैं, उनकी संख्या करीबन 250-300 तक होती है. इन सभी जवानों को अलग-अलग टुकड़ियों में बांट कर इन्हें परिस्थितियों और वातावरण से अवगत कराया जाता है. यह ट्रेनिंग पहले 9 हफ्तों की होती है, फिर इन जवानों को एडवांस 3 हफ्तों की ट्रेनिंग मिलती है.
ट्रेनिंग के जो मुख्य कोर्स रहते हैं, उनमें ऊंची दुर्गम बर्फीली चोटियों पर स्की पेट्रोल और हिमस्खलन रेस्क्यू जैसे कोर्स शामिल हैं. स्की पेट्रोल के जरिए ऊंचे से ऊंचे जंग के मैदान में जवानों तक सहायता पहुंचाना , 20000 फीट तक के ऊंचे पोस्ट पर रहने की क्षमता सैनिकों में पैदा करना, बर्फीले तूफानों और हिमस्खलन के दौरान बचाव और अपने लिए अस्थायी शेल्टर बनाने जैसी बातें शामिल हैं. जवानों को हिमस्खलन में रेस्क्यू करने, बर्फ में फंसे जवानों को बचाने और उनतक मेडिकल ऐड पहुंचाने जैसी बातें शामिल हैं. ये ट्रेनिंग जवानों को माइनस 20 से माइनस 60 के तापमान और 20-35 फीट तक की बर्फ में रहने के लिए सक्षम बना देती है. आप को यह भी बताते चलें कि लेह में चीन को पछाड़ने वाले गलवान के बलवान भी इस स्कूल की पैदावार रहे हैं.
कर्नल दीपांकर हिमालयन कहते हैं ” हाई अल्टीट्यूड वॉरफेयर स्कूल इंडियन आर्मी का एक प्रीमियर एस्टैबलिशमेंट हैं, जहां भारतीय सेना के अलावा पारा मिलिट्री फोर्सेज और फ्रेंडली विदेशी देशों के जवानों को भी ट्रेनिंग दी जाती है. यहां पर ट्रेनिंग हाई अल्टीट्यूड इलाके, सुपर हाई अल्टीट्यूड इलाके और ग्लेशियर के बारे में दी जाती है. यहां दो कोर्स चलाए जाते हैं, माउंटेन वॉरफेयर और विंटर वॉरफेयर कोर्स. यहां पर ट्रेंड हुआ एक सैनिक मॉउंटेन वॉरियर होता है. हमने तकरीबन 18 देशों के 300 से ज्यादा सैनिकों को अब तक यहां ट्रेंड किया हैhigh altitude warfare school.
इन दुर्गम बर्फीली चोटियों में जवानों की प्रैक्टिकल ट्रेनिंग शुरू की जाती है. कई कई फीट बर्फ पर इन्हें यह ट्रेनिंग दी जाती है. पहला स्टेज टीमिंग का रहता है, बर्फ पर हथियार लिए स्कीइंग करने के समय इनके इंस्ट्रक्टर मैदान में मौजूद रहते हैं. बेसिक कोर्स के बाद इन्हें धीरे-धीरे इन्हें कठिन स्लोप्स और ज्यादा मुश्किल ट्रेनिंग दी जाती है. जवानों को यहां ऊंचे पर्वत की बर्फीली चोटियों पर ड्यूटी करने से लेकर स्कीइंग और बर्फीले तूफानों से बचने की ट्रेनिंग दी जाती है. ट्रेनिंग में इन जवानों को छोटी छोटी टुकड़ियों में बांटकर ऐसे इलाकों में भेजा जाता है, जहां ये अस्थायी शेल्टर बनाना सीखें. जवानों को यहां बर्फ पर पेट्रोल करना और तेजी से चलना सिखाया जाता है. इसके बाद जवानों को नवीनतम उपकरणों से भी लैस किया जाता है. बर्फ पर चलने के लिए जवानों को नवीनतम तकनीक और उपकरण दिए जाते हैं.

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