Corona Fear: कोरोना के खौफ से 3 साल कैद रहे मां-बेटे, डॉक्टरों ने बताई ये बड़ी वजह

Woman imprisoned in house: मनोविज्ञान में कहते हैं कि इंसान के अंदर 6 तरह की भावनाएं होती हैं. दुख, खुशी, आश्चर्य, घृणा, भय और गुस्सा. इन सभी भावनाओं में आने वाले उतार चढ़ाव का हमारे मन पर असर पड़ता है. उदाहरण के लिए हम सभी कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान घरों में कैद रहे. कोरोना वायरस हमारे लिए भय का कारण था.

डर का मनोविज्ञान

आज जब देश-दुनिया के हालात सामान्य हो चुके हैं तब एक ऐसा मामला सामने आया जिसने लोगों को हिलाकर रख दिया है. दरअसल हरियाणा के गुरुग्राम में कोरोना संक्रमण के डर से एक महिला, अपने बेटे के साथ करीब 3 सालों से घर में कैद थी. वो ना खुद घर से निकलती थी, ना ही अपने बेटे को निकलने देती थी. उसकी इन सोच की वजह से उसने अपने पति को भी कोरोना संक्रमण के दौरान घर में घुसने नहीं दिया था. उसका पति करीब 3 साल से पास में ही किराए के मकान में रह रहा था. वही बीवी और बच्चे के लिए राशन और खाने पीने का सामान लाता था.

दिमाग पर बुरा असर

कोरोना संक्रमण के डर ने महिला के दिमाग पर इतना गहरा असर डाला कि उसने खुद को और अपने 8 साल के बेटे को वर्ष 2020 में ही घर में कैद कर लिया. पति के समझाने के बावजूद महिला ना खुद घर से बाहर आई, ना ही बेटे को बाहर जाने दिया. पति ने बहुत समझाने की कोशिश की, पर वो नाकाम रहा. इस बीच उसका 8 साल का बेटा 11 साल का हो गया, उसकी मानसिक स्थिति भी बिगड़ रही थी. क्योंकि स्कूल जाना बंद होने के साथ उसका न तो कोई दोस्त नहीं था, और वो बाहर खेलने भी नहीं जा पाता था.

रंग लाई पिता की मुहिम

बच्चे के पिता ने थक हारकर अपने बेटे को उसकी मां के चंगुल से छुड़ाया. पति ने मामले की शिकायत स्वास्थ्य विभाग और पुलिस से की. स्वास्थ्य विभाग और पुलिस के लिए ये मामला अनोखा था. लेकिन जल्दी ही पुलिस और स्वास्थ्य विभाग ने घर को जबरदस्ती खुलवाकर बच्चे और मां दोनों को उस घर से बाहर निकाला. अब दोनों का ही इलाज हो रहा है. इतने वर्षों तक घर में कैद रहने की वजह से दोनों की ही मानसिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ा है. इसीलिए उनके इलाज में मनोचिकित्सक की भी मदद ली जा रही है.

इस मामले को कैसे समझें?

आप खुद सोचिए की कोरोना संक्रमण का डर तो सभी में था. हम सभी अपने घरों में कैद थे, बाहर लॉकडाउन लगा हुआ था. लेकिन जब एक बार लॉकडाउन खत्म हुआ, तो हमारे अंदर संक्रमण का डर धीरे धीरे चला गया. लेकिन कई लोगों में आज भी इस तरह का डर देखा जाता है. तो क्या हम ये मान लें कि महिला को कोरोना संक्रमण का डर था?

डर के मनोविज्ञान का विश्लेषण- PHOBIA

फोबिया शब्द का इस्तेमाल तब किया जाता है, जब व्यक्ति को फिजूल की किसी बात को लेकर डर पैदा हो जाए. ऐसा होने पर इसे मानसिक रोगों की श्रेणी में डाला जाता है. गुरुग्राम में जिस तरह महिला ने खुद और बेटे को 3 सालों से घर में कैद करके रखा था, उसकी एक वजह PHOBIA से जुड़ी हो सकती है.

इसे कहते हैं ‘AGORAPHOBIA’

ये एक तरह मानसिक रोग है, जिसमें मरीज को अकेले घर से बाहर जाने से डर लगता है. मरीज को लगता है कि अगर वो घर से बाहर निकला तो उसे चोट लग जाएगी, या फिर वो बीमार पड़ जाएगा, या फिर किसी ना किसी मुसीबत में फंस जाएगा. ऐसे मरीज को ये भी डर रहता है कि उसे कुछ हुआ तो कोई उसकी मदद नहीं करेगा.

गुरुग्राम में जो महिला घर से बाहर नहीं आ रही थी, उसके अंदर कोरोना संक्रमित हो जाने का डर था, यानी मुमकिन है कि वो AGORA PHOBIA से पीड़ित हो. इसी वजह से उसका इलाज मानसिक रोग विशेषज्ञ से भी करवाया जा रहा है.

फोबिया के प्रकार

इसी तरह से बहुत से लोगों को पानी से डर लगता है. कई लोग नदी में यात्रा करते समय या समंदर में यात्रा करते हुए बहुत डर जाते हैं. बड़ी मात्रा में पानी देखकर उन्हें डर लगता है. ऐसे मरीज़ जिनके साथ ऐसा होता है, उन्हें AQUAPHOBIA (एक्वाफोबिया) से पीड़ित माना जाता है.

कई लोगों को नहाने से डर लगता है. इसे ABLUTOPHOBIA (अब्लूटोफोबिया) कहा जाता है. ये डर अक्सर छोटे बच्चों में देखा जाता है. लेकिन बड़े होते होते ये डर दूर हो जाता है. वयस्कों में जब नहाने से डर देखा जाए तो उसे ABLUTOPHOBIA से पीड़ित बताया जाता है.


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