उत्तरकाशी से 5 साल पहले इस देश की गुफा में हुआ था चमत्कार, 12 बच्चों और उनके कोच की ऐसे बची थी जान

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग में फंसे सभी 41 मजदूरों को मंगलवार को सकुशल बाहर निकाल लिया गया. इन लोगों को एक-एक करके 800 मिमी के उन पाइपों के जरिए बाहर निकाला गया जिन्हें मलबे में ड्रिल करके अंदर डालकर एक रास्ता बनाया गया था. बता दें चारधाम यात्रा मार्ग पर निर्माणाधीन साढ़े चार किलोमीटर लंबी सिलक्यारा-बड़कोट सुरंग का 12 नवंबर को एक हिस्सा ढहने से उसमें फंसे श्रमिकों को निकालने के लिए युद्धस्तर पर अभियान चला रहे बचावकर्मियों को 17वें दिन यह सफलता मिली. इस दौरान पूरा देश इन मजदूरों की सलामती की दुआएं करता रहा.

इस हादसे ने एक बार फिर थाईलैंड के गुफा रेस्क्यू ऑपरेशन की याद ताजा कर दी. जून-जुलाई 2018 में एक जूनियर एसोसिएशन फुटबॉल टीम को उत्तरी थाईलैंड के चियांग राय प्रांत में एक केव सिस्टम थाम लुआंग नांग नॉन से बचाया गया था.

23 जून को बच्चों ने किया गुफा में प्रवेश
11 से 16 वर्ष की आयु के 12 बच्चों की टीम और उनके 25 वर्षीय अस्सिटेंट कोच ने प्रैक्टिस सेशन के बाद 23 जून को गुफा में प्रवेश किया. उनके एंट्री करने के कुछ ही समय बाद, भारी बारिश शुरू हो गई और गुफा कॉम्प्लेक्स में आंशिक रूप से बाढ़ आ गई, जिससे उनका बाहर निकलने का रास्ता ब्लॉक हो गया और वे अंदर ही फंस गए.

इन लोगों को बचाने का काम काफी चुनौतीपूर्ण साबित हुआ. बढ़ते जल स्तर और तेज धाराओं के कारण इनका पता लगाने में बहुत मुश्किल आ रही थी. ये लोग एक सप्ताह से अधिक समय से संपर्क से बाहर थे.

2 जुलाई को बचावकर्ताओं ने टीम को देखा
इस रेस्क्यू ऑपरेशन में कई देशों की बचाव टीमों ने भाग लिया. 2 जुलाई को, संकीर्ण मार्गों और गंदे पानी से गुजरते हुए ब्रिटिश गोताखोर जॉन वोलान्थेन और रिक स्टैंटन ने टीम को गुफा के मुहाने से लगभग 4 किलोमीटर (2.5 मील) दूर एक ऊंची चट्टान पर जीवित पाया.

इसके बाद इन्हें गुफा से बाहर निकालने के कई तरीकों पर चर्चा की गई. बचाव दल ने अगली मानसून बारिश से पहले टीम को गुफा से बाहर निकालने के लिए प्रयास तेज कर दिए.  मौसम विभाग ने 11 जुलाई के आसपास बारिश शुरू होने की भविष्यवाणी की थी.

16वें दिन मिली थी पहली कामयाबी
पहली कामयाबी ऑपरेशन के 16वें दिन 8 जुलाई को मिली थी जब 13 विशेषज्ञ गोताखोरों और पांच थाई नेवी सील्स की एक अंतरराष्ट्रीय टुकड़ी, जिसमें चार ब्रिटिश और दो ऑस्ट्रेलियाई गोताखोर शामिल थे, लड़कों को सुरक्षित निकालने के लिए गुफा में गए. चूंकि मार्ग के सबसे कठिन हिस्से एक से अधिक बचावकर्ताओं के लिए बहुत संकीर्ण थे, इसलिए हर लड़के की जिम्मेदारी एक बचाव गोताखोर को सौंपी गई थी.


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