बावरिया की लाइन से संगठन के नेता हुए हैरान

मुख्य प्रतिनिधि ॥ भोपाल
चुनावी मैदान के लिए संगठन के पदों को ब्रेकर बनाकर प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया ने कांग्रेस के नेताओं के सामने दुविधा के हालात बना दिए हैं। न चाहते हुए भी कई नेताओं को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है। इससे एक बार फिर प्रदेश कार्यालय में इस्तीफों का ढेर लगना तय हो गया है। वहीं महज संगठन के पदों को लेकर भी पार्टी में जोड़-तोड़ की राजनीति बढ़ सकती है।
चुनावी कसरत शुरू करते हुए प्रभारी महासचिव बावरिया अपने इस दौरे में भी बदलाव भले ही न कर पाए हों, लेकिन टिकट की आस लगाए नेताओं को संगठन से दूरी बनाने पर मजबूर जरूर कर गए। हालांकि बावरिया पहले भी यह बात कह चुके हैं कि संगठन में बैठे नेताओं को पार्टी प्रत्याशी नहीं बनाएगी। उस समय भी चुनाव लडऩे के इच्छुक इस्तीफा लेकर पहुंच गए थे। उस समय तो चुनाव दूर थे, इसलिए वैकल्पिक व्यवस्था न होने के कारण चुनाव लउऩे की तैयारी कर रहे पदाधिकारी संगठन की भी जिम्मेदारी संभालने तैयार हो गए थे। मगर अब इस बार प्रत्याशी के लिए चुनावी जिम्मेदारियां भी बावरिया ने गिना दी हैं। इससे अपना मैदान तैयार करके बैठे अब संगठन से इस्तीफा देने का मन बनाने लगे हैं। सूत्रों के मुताबिक करीब दो दर्जन जिलाध्यक्ष चुनाव लडऩे की तैयारी में हैं। इनके अलावा प्रदेश संगठन के भी दो दर्जन से ज्यादा नेता टिकट की आस में ही संगठन से जुउ़े हुए थे। इनमें महामंत्री, प्रदेश सचिव और प्रवक्ता भी शामिल हैं। ऐसे में होली के बाद से कांग्रेस में इस्तीफा देने वालों की बाढ़ आ सकती है।
मैदान में दिखाना होगी सक्रियता
बावरिया ने टिकट मांगने वालों के लिए बकायदा गाइड लाइन जारी कर दी है। इसके तहत जिन्हें टिकट चाहिए, उन्हें कम से कम एक महीने मैदान में सक्रियता दिखाना होगी। संगठनात्मक एवं चुनावी गतिविधियों में सक्रियता बढ़ाकर भाजपा सरकार के खिलाफ संघर्ष करना होगा। दावेदारी करने वालों को कम से कम 1 महीने अपने क्षेत्र में भाजपा सरकार के खिलाफ मुद्दों को उठाना जरूरी होगा। इस दौरान मीडिया को साधने का काम भी नेताओं को करना होगा तो संगठन के निचले स्तर तक के नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ मेलजोल बढ़ाना होगा। इसके बाद ही नेताओं को चुनाव लडऩे के योग्य माना जाएगा। इससे अब मजबूरी में नेताओं को संगठन के पद छोड़कर मैदान में अपनी दावेदारी मजबूत करना होगी।
आर्थिक स्थिति भी करना होगी मजबूत
चुनाव लडऩा वैसे भी तंगहाल आदमी के बूते की बात नहीं है। ऐसे में अपनी ओर से व्यवस्था करने के बावजूद प्रत्याशियों को विश्वास रहता है कि पार्टी की ओर से आर्थिक सहायता मिल ही जाए्र्रगी। मगर बावरिया ने पार्टी की तंगहाली का हवाला देते हुए इस बार दावेदारों को अपनी जेब टटोलने पर मजबूर कर दिया है। बावरिया ने साफ कर दिया है कि इस बार टिकट के लिए आवेदन करने के साथ ही 50 हजार रुपए का डिमांड ड्राफ्ट भी देना होगा, जो किसी भी स्थिति में वापस नहीं किया जाएगा। इससे साफ हो गया है कि प्रत्याशियों को इस बार पार्टी की ओर से ज्यादा आर्थिक सहायता नहीं मिल सकेगी। प्रत्याशियों को अपनी जेब के दम पर ही चुनाव लडऩा होगा। ऐसे में चुनाव के दौरान प्रत्याशियों के साथ चलने वाली भीड़ को मैनेज करना भी सभी के लिए आसान नहीं होगा, बल्कि पार्टी का खजाना भी दावेदारों को मिलकर भरना होगा।


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