2012 में शिवराज ने खुद ही अटकाई थी पुलिस कमिश्नर प्रणाली

सच प्रतिनिधि ॥ भोपाल
बलात्कार के मामलों में देश भर में बदनामी और किसान आंदोलन के बाद कानून बाद लगातार बिगड़ती कानून व्यवस्था के बाद मुख्यमंत्री शिवजराज सिंह चौहान कई बार पुलिस मुख्यालय के चक्कर लगा चुके हैं। किसान आंदोलनक के समय तो कानून व्यवस्था के हालात इतने अनियंत्रित हो गए थे कि चौहान को खुद ही उपवास पर बैठना पड़ा था। लॉ एंड आर्डर के मुद्दे पर घिरने के बाद चौहान ने एक बार फिर पुलिस कमिश्नर प्रणाली के जिन को बाहर निकाला है। पहले भी सरकार को इसकी याद चुनाव के आसपास के समय ही आई थी। तत्कालीन गृहमंत्री बाबूलाल गौर ने इस प्रणाली को उचित मानते हुए लागू करने की तैयारी की थी लेकिन सीएम से सहमति ने मिलने के कारण यह सिस्टम अटक गया था।
गृहमंत्री रहते हुए बाबूलाल गौर ने भी पुलिस कमिश्रर प्रणाली को लेकर पहल की थी। प्रणाली का अध्यन करने के लिए गौर चेन्नई भी गए थे लेकिन वहां से लौटने के बाद जब सीएम से सहमति नहीं मिली तो उनके सुर बदल गए थे। उनका कहना था कि यह प्रणाली चालीस लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में ही कारगर है। अब चुनाव के कुछ महीने पहले सरकार ने एक बार फिर से कमिश्रर प्रणाली का शिगुफा छोड़ा है। सीएम की इस कथित घोषणा के बाद पुलिस के आला अधिकारियों के साथ-साथ मैदानी अमला भी खुश है। हालांकि अभी सिर्फ घोषणा की गई है। इसकों अमलीजामा पहनाया जाना बाकी है। पुलिस कमिश्रनर प्रणाली को अपने अधिकारों में कटौती के रूप में देखने वाली आईएएस लॉबी को मनाना एक बड़ी चुनौती है। मप्र में पुलिस कमिश्रर प्रणाली लागू करने को लेकर पिछले 18 साल से चर्चा की जा रही है। सबसे पहले वर्ष 2000 में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पहली बार इसकी पहल की थी। इसके बाद वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पुलिस कमिश्रर प्रणाली की घोषणा की थी। इसके बाद इस प्रणाली के सर्वे के लिए तत्कालीन गृहमंत्री बाबू लाल गौर चेन्नई गए थे। चैन्नई की आबादी साठ लाख से अधिक है। वहां पर 135 थाने है। पुलिसकर्मियों की संख्या भी बीस हजार से ज्यादा है। सर्वे के दौरान गौर ने वहां के पुलिस कमिश्रर से मुलाकात भी की थी। यह पूरी कवायद विधानसभा चुनाव के ठीक एक साल पहले की गई थी। चैन्नई से लौटने के बाद ही गौर के बोल बदल गए थे। बाद में सरकार मानने लगी कि जिस शहर की आबादी 40 लाख से ज्यादा है। वहां पर ही कमिश्रर प्रणाली कारगर होती है। चुनाव आते-आते शिवराज सरकार ने इस प्रणाली को भुला दिया। किसान आंदोलन व भोपाल और इंदौर में लगातार बढ़ते अपराधों के बाद अब फिर से कवायद शुरू की गई। हालांकि यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि दोनों शहरों में फिलहाल इसे पायलट प्रोजेक्ट के तहत शुरू किया जाएगा। गृहमंत्री भूपेन्द्र सिंह ने अन्य राज्यों के शहरों में लागू पुलिस कमिश्रर प्रणाली का अध्यन करने को कहा है। इधर सीएम के गंभीर रुख को देखते हुए आईपीएस अफसरो के चेहरे खिले हुए हैं।
सीएम की नहीं मिल पाई थी सहमति : गौर
पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा विधायक बाबूलाल गौर को उम्मीद है कि पुलिस कमिश्नर प्रणाली से शीघ्र न्याय मिलेगा। उनका कहना है कि बड़े जिलों में कलेक्टरों के पास बहुत अधिक काम होता है। ऐसे में लॉ एंड आर्डर के हर मामले पर नजर रखना मुश्किल होता है। वे कहते हैं कि छोटे बदमाशोंं के विवादों, उनके द्वारा किए गए अतिक्रमणों पर पुलिस सीधी कार्रवाई नहीं कर पाती। इस प्रणाली में पुलिस अधिक शीध्रता के साथ काम कर पाएगी। गौर का कहना है कि देश के हर बड़े शहर में पुलिस कमिश्रर प्रणाली है इसलिए प्रदेश के दो बड़े शहरों भोपाल व इंदौर में इसे लागू होना चाहिए। वे कहते हैं कि गृहमंत्री रहते हुए मैं इस प्रणाली के अवलोकन के लिए चेन्नई गया था। लेकिन बाद में सीएम की सहमति न मिल पाने के कारण प्रणाली लागू नहीं हो पाई थी।
अपराधों पर लगाम लगाने में शिवराज सरकार नाकाम : अजय सिंह
भोपाल। हजारों बालिकाओं की अस्मत लुट गई, प्रदेश बलात्कार में नंबर वन हो गया, अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को 6 साल बाद भोपाल और इंदौर में पुलिस आयुक्त प्रणाली की घोषणा की याद आई। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा है कि पुलिस आयुक्त प्रणाली, फांसी का कानून कोरी घोषणाओं से नहीं, इच्छाशक्ति से घटनाओं पर और तंत्र पर लगाम लगता है, जिसमें मुख्यमंत्री और उनका तंत्र पूरी तरह असफल है। नेता प्रतिपक्ष ने कहाकि मुख्यमंत्री चौहान ने वर्ष 2012 में मध्यप्रदेश में तेजी से महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराध पर चिंता जताई थी। उन्होंने फरवरी में राज्यपाल के अभिभाषण पर हुई चर्चा के जबाव में घोषणा की थी भोपाल और इंदौर में 20 लाख से अधिक जनसंख्या को देखते हुए पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू की जाएगी। इस घोषणा को पूरे 6 साल एक माह हो गया और अब मुख्यमंत्री फिर से इसी प्रणाली की बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि विधानसभा जैसे फ्लोर पर की गई अपनी ही घोषणा पर जब मुख्यमंत्री गंभीर नहीं है तो इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि वे जनता के बीच जो घोषणा करते हैं उसके प्रति कितने गंभीर होंगे। श्री सिंह ने कहा कि मौजूदा कानून का पालन करने में सरकार पूरी तरह असफल है। अपनी असफलता को छुपाने वह फिर नई चाल चलने में व्यस्त हो गई।
पुलिस कमिश्नर सिस्टम की स्थापना सामायिक पहल होगी: शर्मा
भोपाल। शहरीकरण के साथ तेज रफ्तार से औद्योगीकरण होने से विकट कानून व्यवस्था और अपराधों का स्वरूप बिगड़ा है। कानून व्यवस्था और प्रशासकीय सुविधा की दृष्टि से देश के 71 से अधिक महानगरों में पुलिस कमिश्नर व्यवस्था आरंभ की जा चुकी है जिसके अनुकूल परिणामों को देखते हुए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भी मध्यप्रदेश के दो महानगरों में पुलिस व्यवस्था को चुस्त दुरूस्त करते हुए पुलिस कमिश्नर की व्यवस्था आरंभ करने का निश्चय किया है। भाजपा के प्रदेश महामंत्री विष्णुदत्त शर्मा ने कहा कि अनुकूल नतीजे सामने आयेंगे। लोककल्याणकारी राज्य में कलेक्टोरेट का बहुआयामी दायित्व बढ़ा है। उसके अनुरूप प्रशासन सज्जित हो सकेगा। पुलिस कमिश्नर व्यवस्था आरंभ करने का विचार सरकार का साहसिक कदम होगा। उन्होंने कहा कि मौजूदा व्यवस्था में कानून व्यवस्था को चुनौती बने तत्वों के विरूद्ध कार्यवाही में विलंब होता है। जिला बदर जैसे निर्णयों में भी बरसों लग जाते है। अपराधी तत्वों के विरूद्ध विलंब अपराधोन्मुखी लोगों को छूट प्रोत्साहित करती है। पुलिस कमिश्नर व्यवस्था के अधीन कानून व्यवस्था को चुनौती बने तत्वों को जमानतए जिला बदर जैसी कार्यवाही के अधिकार इस व्यवस्था में निहित होने से सामयिकए असरदार कार्यवाही के अवसर बढ़ेंगे। पुलिस अपराधी का प्रोफाइल भलीभांति जानती है। उसके द्वारा ही निर्णय पर विचार करना अधिक परिणामोन्मुखी होगा।


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