बांग्लादेश में शेख हसीना तो जीत गईं, पर ये संकेत अच्छे नहीं हैं

बांग्लादेश में मुख्य विपक्षी पार्टी बीएनपी के बहिष्कार के बाद हुए चुनाव के नतीजे एक तरह से सबको पता थे. देश के 12वें संसदीय चुनावों में शेख हसीना की अवामी लीग की जीत लगभग तय थी. ध्यान देने वाली बात यह है कि ये परिणाम उस चुनाव के हैं जिसमें मात्र 41.8 प्रतिशत वोटिंग हुई है. चुनाव खत्म होने से एक घंटे पहले तक केवल 27 प्रतिशत मतदान हुआ था. ऐसे में चुनाव पर सवाल खड़े हो रहे हैं क्योंकि इसमें लोगों की, नेताओं की, पार्टियों की भागीदारी कम रही. अगर हसीना देश को लोकतंत्र के रास्ते पर मजबूती से आगे ले जाना चाहती हैं तो सबको साथ लेकर चलना होगा. इसमें विपक्ष भी शामिल है.

हिंदुओं पर असर

वैसे, पाकिस्तान की तरह बांग्लादेश में भी लोकतंत्र इतना आसान नहीं रहा है. कई बार मार्शल लॉ लगा. हालांकि जब 2008 में हसीना सत्ता में आईं तो उन्होंने देश के संविधान का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप सामने रखा. उनके नेतृत्व में बांग्लादेश में असुरक्षित महसूस कर रहे अल्पसंख्यक हिंदुओं ने भी थोड़ी राहत की सांस ली. हालांकि उन पर अत्याचार अब भी खत्म नहीं हुए हैं. हां, हसीना के कार्यकाल में हिंदुओं को महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर नियुक्ति जरूर मिली. देश का आर्थिक प्रदर्शन बेहतर हो रहा है जिससे बांग्लादेश 2026 अल्प विकसित देशों की लिस्ट से बाहर हो जाएगा. 

इधर, शेख हसीना के समय में भारत और बांग्लादेश के संबंध काफी बेहतर चल रहे हैं. उन्होंने भारत विरोधी तत्वों के खिलाफ बिल्कुल भी बर्दाश्त न करने वाली नीति अपनाई है. उनके समय में ही दोनों देशों के बीच सभी जमीनी और समुद्री सीमाओं का विवाद सुलझा लिया गया. कनेक्टिविटी काफी बेहतर हुई है. ट्रांजिट और ट्रांस-शिपमेंट हकीकत बन चुका है. 

देश के अंदरूनी हालात

हालांकि एंटी-लिबरेशन ताकतों के खिलाफ हसीना के सख्त कदमों की आलोचना भी होती रहती है. इसी वजह से विपक्ष में भारी खालीपन देखा जा रहा है. असर यह हुआ कि जमीनी स्तर पर बीएनपी और जमात के नेता अवामी लीग में शामिल हो रहे हैं. हाल के चुनावों में 62 सीटें जीतने वाले निर्दलीय दूसरे बड़े गुट बनकर उभरे. बताया जा रहा है कि इनमें से कई डमी अवामी कैंडिडेट ही थे. जिस तरह से अवामी कैंडिडेट को लाख-डेढ़ लाख मतों के अंतर से जीत मिली उसने भी कई सवाल खड़े किए. 

वो सेक्युलर नजरिया

क्रिकेटर शाकिब अल हसन ने मगुरा सीट से डेढ़ लाख से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की. इससे देश ही नहीं, दुनिया में यह धारणा बन गई कि बांग्लादेश में सत्तारूढ़ अवामी लीग का कैंडिडेट ही जीत सकता है. आगे चलकर अगर और भी बाहरी अवामी में शामिल होते हैं तो हसीना का सेक्युलर विजन पहले जैसा नहीं रह जाएगा. पता नहीं इसके बाद क्या होगा. ऐसे में अवामी लीग के अगली पीढ़ी के नेता चीन के करीब जा सकते हैं. यह भारत के लिए चिंता की बात हो सकती है. 

इसके अलावा बांग्लादेश अपने आप में सिंगल पार्टी रूल की तरफ बढ़ता दिखाई देता है, जो देश के आर्थिक विकास के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. बांग्लादेश को एक मजबूत राजनीतिक विपक्ष की जरूरत है. हसीना को भी इसकी जरूरत है. आखिर उनकी पार्टी को आगे बढ़ाने वाले भी उनकी तरह ही प्रभावशाली, लोकतांत्रिक होना चाहिए.


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