जब पीठ पर पड़ते हैं तो दर्द नहीं खुशियां देते हैं गुलाल गोटे

जयपुर ॥ एजेंसी
होली के नाम से ही मथुरा और बरसाना याद आता है, जहां के रोम-रोम में कृष्ण व राधा की लीलाएं बसी हुई हैं। लेकिन एक और चीज की याद दिलाती है होली। वह परम्परा जो 300 साल पहले अरब से यहां लाई गई थी। हम बात कर रहे हैं जयपुर में सदियों से चली आ रही एक विशेष परम्परा की। यहां होली खेलने के लिए लड्डू के आकार के गुलाल गोटे बनाए जाते हैं। ये गुलाल से बनते हैं, जो होली के दौरान एक-दूसरे पर फेंके जाते हैं।
डरिये मत, ये लगते ही फूट जाते हैं और फिजाओं में गुलाल के सात रंग व खुशबू बिखेर देते हैं। होली खेलते समय जब ये पीठ पर गोल-गोल गोटे पड़ते हैं, तो बिखरने वाले सात रंग विदेशी सैलानियों की यादों में राजस्थान की यादें ताजा रखते हैं। जयपुर में खास तौर पर लड्डू के आकार के गुलाल गोटे तैयार किए जाते हैं और परिवार भी 300 सालों से इस काम में लगे हुए हैं। जयपुर के पुराने शहर में रह रही गुलाल गोटा की महिला कारीगर मुसर्रत जहां ने बताया कि उनका परिवार 300 साल से गुलाल गोटा बनाने की परम्परा निभा रहा है। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वजों को कच्छावा राजा ने 300 साल पहले अरब से लाकर यहां बसाया था। राज परिवार उनके पूर्वजों के बनाए गुलाल गोटों से होली खेलता था, लेकिन अब ये खेल राज परिवार से निकलकर आम जनता तक पहुंच चुका है।जानकारी के अनुसार मथुरा के उदासीन कासीन आश्रम में जयपुर के मणिहार मुस्लिम परिवार द्वारा गुलाल गोटा तैयार किया जाता है, जिसे सम्पूर्ण श्रद्धा से सराबोर होकर श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पित किया जाता है। इसके बाद शुरू होती है होली।
मजहबी नजाकत से तैयार होते हैं जयपुरी गुलाल गोटे
थोड़ा गुलाल, थोड़ा लाख, थोड़ी सी कलाकारी और एक छोटी सी फूंक… कुछ इस नजाकत से तैयार किया जाता है गुलाल गोटा। इसे मजहबी नजाकत इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि हिन्दुओं के रंगों के इस त्यौहार के अवसर पर मुसलमान बड़े प्यार से गुलाल गोटे तैयार कर प्रेम का रंग भर देते हैं। यही कारण है कि यह जयपुर से लेकर विदेशों तक हर होली पर खासा पसंद किया जाता है।गुलाबी नगर का गुलाल गोटा जिस पर भी फेंका जाता है वो रंग से सराबोर हो जाता है। गुलाल गोटा बनाने का काम यूं, तो जयपुर में कई सालों से चल रहा है, पर अब भी इसे बनाना बेहद बारीकि का काम है। गुलाल गोटा बनाने वाले कलाकारों की मानें तो गुलाल गोटा जितना आकर्षक लगता है, इसे बनाने में उतनी ही मेहनत और उतना ही ध्यान भी लगता है। इसे बनाने में छोटी छोटी बातें हैं, जो ध्यान देना बेहद जरूरी है। इसमें लाख को गर्म करने से लेकर उसे ठंडा करने। उसकी चपटी बनाने, फिर उसमें फूंक मारने और गुलाल भरने का काम काफी संभालकर किया जाता है। छोटी सी भी चूक हुई और गुलाल गोटा खराब हो जाता है। गुलाल गोटा बनाना ध्यान लगाने जैसे धैर्य का काम है।


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