अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) आज से दो दिवसीय सुनवाई यह तय करने के लिए करेगा कि क्या इजरायल ने गाजा में फिलिस्तीनियों के खिलाफ नरसंहार को अंजाम दिया या नहीं. बता दें दक्षिण अफ़्रीका इस केस को अदालत में लेकर गया है. वहीं इजरायल ने इस आरोप को ‘निराधार’ बताते हुए इसे दृढ़ता से खारिज कर दिया है.
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय क्या है?
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) के विपरीत, आईसीजे नरसंहार जैसे अत्यंत गंभीर अपराधों के लिए लोगों पर मुकदमा नहीं चला सकता है, लेकिन इसकी राय संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के लिए महत्वपूर्ण है.
आईसीजे अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन से जुड़े सभी मामलों पर स्वचालित रूप से फैसला नहीं ले सकता है. यह केवल उन मामलों पर निर्णय ले सकता है जो इसके अधिकार क्षेत्र को सहमति देने वाले राज्यों द्वारा इसके सामने लाए जाते हैं.
नरसंहार क्या है और इजराइल के खिलाफ केस क्या है?
दक्षिण अफ़्रीका का आरोप है कि हमास के 7 अक्टूबर के हमले के बाद इजरायल फिलिस्तीनियों के खिलाफ नरसंहार कर रहा है. बता दें हमास के सैकड़ों बंदूकधारी गाजा पट्टी से दक्षिणी इज़राइल में घुस गए, 1,300 लोगों की हत्या कर दी, जिनमें मुख्य रूप से नागरिक थे. हमलावरों ने लगभग 240 बंधकों बना लिया और उन्हें गाजा ले गए.
इसके बाद इजरायल ने हमास के कंट्रोल वाले गाजा पट्टी पर हमला बोल दिया. हमास द्वारा संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, जब से इजरायल ने जवाब में हमास के खिलाफ अपना सैन्य अभियान शुरू किया है, तब से गाजा में 23,000 से अधिक लोग मारे गए हैं, जिनमें मुख्य रूप से महिलाएं और बच्चे हैं.
दक्षिण अफ़्रीका द्वारा आरोप लगाया गया है कि इजरायल के ‘कार्य और चूक’ ‘चरित्र में नरसंहारक हैं क्योंकि उनका उद्देश्य फ़िलिस्तीनी राष्ट्रीय, नस्लीय और जातीय समूह के एक बड़े हिस्से का विनाश करना है.’
इसका तात्पर्य इस बात से है कि इजरायल सक्रिय रूप से गाजा में क्या कर रहा है और वह क्या करने में नाकाम हो रहा है? जैसे कि वह गाजा में हवाई और जमीनी हमले कर रहा है और कथित तौर पर दक्षिण अफ्रीका के अनुसार, इजरायल नागरिकों को होने वाले नुकसान रोकने में नाकाम रहा है.
नरसंहार पर क्या है अंतरराष्ट्रीय कानून?
अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत, नरसंहार को एक राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को पूरी तरह या आंशिक रूप से नष्ट करने के इरादे से एक या अधिक कृत्य करने के रूप में परिभाषित किया गया है.
वे कृत्य हैं:
1-समूह के सदस्यों को मारना या उन्हें गंभीर शारीरिक या मानसिक क्षति पहुँचाना
2-जानबूझकर समूह पर जीवन की ऐसी स्थितियां थोपना जिससे उसका संपूर्ण या आंशिक भौतिक विनाश हो सके
3-समूह के भीतर जन्मों को रोकने के उद्देश्य से उपाय लागू करना
4-समूह के बच्चों को जबरन दूसरे समूह में स्थानांतरित करना
क्या अदालत इजराइल को गाजा में युद्ध रोकने पर मजबूर कर सकती है?
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण अफ्रीका चाहता है कि आईसीजे इजराइल को ‘गाजा में और उसके खिलाफ अपने सैन्य अभियानों को तुरंत निलंबित करने’ का आदेश दे. लेकिन यह लगभग निश्चित है कि इजरायल इस तरह के आदेश की अवहेलना करेगा और उसे इसका अनुपालन नहीं कराया जा सकेगा.
निर्णय सैद्धांतिक रूप से ICJ के पक्षों पर बाध्यकारी हैं – [जिनमें इज़राइल और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं] – लेकिन व्यवहार में, इसे लागू करना मुश्किल है. 2022 में, ICJ ने रूस को यूक्रेन में ‘तुरंत सैन्य अभियान निलंबित करने’ का आदेश दिया – लेकिन आदेश को नजरअंदाज कर दिया गया.
कब होगा फैसला?
ICJ इजराइल द्वारा अपने सैन्य अभियान को निलंबित करने के दक्षिण अफ्रीका के अनुरोध पर शीघ्र फैसला दे सकता है. यह, सैद्धांतिक रूप से, फ़िलिस्तीनियों को उस चीज़ से बचाएगा जिसे अंततः नरसंहार घोषित किया जा सकता है. लेकिन इजरायल नरसंहार कर रहा है या नहीं, इस पर अंतिम फैसला आने में कई साल लग सकते हैं.
दक्षिण अफ्रीका ICJ में क्यों लाया है मामला?
दक्षिण अफ़्रीका गाजा में इजरायल के सैन्य अभियान की बड़ा आलोचक रहा है और वह यह कहता है कि संयुक्त राष्ट्र के 1948 के नरसंहार कंवेंशन के हस्ताक्षरकर्ता के रूप में, कार्य करना उसका दायित्व है.
सत्ताधारी अफ़्रीकी नेशनल कांग्रेस का भी फिलिस्तीनियों के साथ एकजुटता का एक लंबा इतिहास रहा है. दक्षिण अफ्रीका फिलिस्तीनियों के संघर्ष और रंगभेद के खिलाफ अपने संघर्ष में समानताएं देखता है. बता दें 1994 में पहले लोकतांत्रिक चुनावों तक, देश के काले बहुमत के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका में श्वेत-अल्पसंख्यक सरकार द्वारा नस्लीय अलगाव और भेदभाव की नीति लागू की जाती थी.
हालांकि दक्षिण अफ्रीका ने 7 अक्टूबर के हमलों की निंदा की और बंधकों की रिहाई का अपील की. लेकिन पिछले महीने, राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने दक्षिण अफ्रीकी यहूदी नेताओं से कहा कि उनकी सरकार ‘फिलिस्तीन के लोगों के साथ खड़ी है, जिन्होंने सात दशकों से अधिक समय से रंगभेद-प्रकार के क्रूर कब्जे को सहन किया है.’
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